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नई दिल्ली: इस्लाम का पवित्र त्योहार बकरीद जिसे ईद-उल-अज़हा और ईद-उल-ज़ुहा भी कहा जाता है, आने वाला है। माना जा रहा है इस बार बकरीद 21 या 22 अगस्त को पड़ सकती है। ईद-उल-ज़ुहा के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे या किसी अन्य पशु की कुर्बानी देते हैं। इस्लाम में इस दिन को फर्ज़-ए-कुर्बान का दिन कहा गया है। लेकिन बकरीद के पहले ही मोदी सरकार ने एक अहम फैसला ले लिया है। मोदी सरकार ने सभी सी पोर्ट्स से बकरियों और भेड़ों के निर्यात पर रोक लगा दी है। देश में सभी बंदरगाहों से पशुधन निर्यात पर सरकार ने अनिश्चितकालीन रोक लगा दी है। जानवरों के हितों के लिए काम करने वाली संस्थाओं की मांग को देखते हुए सरकार ने यह निर्णय लिया है।

पेटा ने की सरकार से गुजारिश

हाल ही में पशुओं के हितों के लिए काम करने वाली संस्था पेटा ने सभी राज्य सरकारों को पत्र लिखकर मांग की है कि बकरीद के अवसर पर होने वाले पशुओं की अवैध तरीके से कुर्बानी को रोका जाए। पेटा ने कहा है कि पशुओं का वध सिर्फ लाइसेंस वाले बूचड़खाने में ही होना चाहिए। जिसके देखते हुए सरकार ने ये कदम उठाया हैं।

लेकिन सरकार के अचानक उठाये गए इस कदम से निर्यातकों को करोड़ों का नुकसान हो रहा हैं। क्योंकि बकरीद से पहले मिडल-ईस्ट के देशों में तकरीबन 2 लाख बकरियां और भेड़ें भेजी जानी थीं। लेकिन सरकार के इस कदम से अब ऐसा नहीं हो पाएगा।

सरकार के इस कदम से हुआ करोड़ों का नुकसान

सरकार के इस कदम का निर्यातक जमकर विरोध कर रहे है। निर्यातकों को कहना है की जहाज मालिकों ने यात्रा की विशेष अनुमति मांगी थी। जिसे मंत्रालयों ने मान लिया था। तो अब अचानक ये फैसला क्यों लिया गया। निर्यातकों को यह भी कहना है की सरकार के ऐसा करने से हमे काफी नुकसान उठाना पडे़गा। क्योंकि हमने अनुमति मिलने के बाद विदेशी ग्राहकों से हमने अडवांस पेमेंट भी ले लिया था। सरकार के इस कदम से अब हमे करोड़ों रुपये का नुकसान होने जा रहा है। देश से खासकर भेड़ों और बकरियों का निर्यात होता है।

इतना हुआ था फायदा

अगर अब बात आंकड़ो की जाए तो वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, मवेशियों का एक्सपोर्ट 2013-14 में 69.30 करोड़ रुपए था, जो 2016-17 तक 527.40 करोड़ रुपये हो गया। जबकि 2017-18 में यह गिरकर 411.02 करोड़ रुपये हो गया है। एनडीए सरकार के दौरान देश से पशुधन निर्यात में काफी तेजी देखने को मिली थी।

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