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नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ने महंगाई बढ़ने की चिंता में दो माह में दूसरी बार मुख्य नीतिगत दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि की है। इस वृद्धि से आने वाले समय में बैंकों से कर्ज लेना महंगा हो सकता है। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की तीसरी द्वैमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 0.25 प्रतिशत बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत कर दिया। रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में हुई 6 सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने समीक्षा बैठक के तीसरे दिन यह फैसला किया। इसके साथ ही मौद्रिक नीति के रुख को भी तटस्थ बनाए रखा है।

समिति ने चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को 4.2 प्रतिशत पर रखा है, जबकि वर्ष की दूसरी छमाही के दौरान इसके 4.8 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान लगाया है। मुद्रास्फीति के बारे में आरबीआई का ताजा अनुमान इसके चार प्रतिशत के संतोषजनक माने जाने वाले स्तर से ऊपर हैं। बहरहाल, रिजर्व बैंक ने जीडीपी वृद्धि के अनुमान को 7.4 प्रतिशत पर पूर्ववत रखा है। इस वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में उसने जीडीपी वृद्धि 7.5 से 7.6 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान व्यक्त किया है।

रोजमर्रा के कामकाज के लिए बैंकों को भी बड़ी-बड़ी रकमों की ज़रूरत पड़ जाती है, और ऐसी स्थिति में उनके लिए देश के केंद्रीय बैंक, यानि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से ऋण लेना सबसे आसान विकल्प होता है। इस तरह के ओवरनाइट ऋण पर रिजर्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं। अब आप आसानी से समझ सकते हैं कि जब बैंकों को कम दर पर ऋण उपलब्ध होगा, वे भी ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपनी ब्याज दरों को कम कर सकते हैं, ताकि ऋण लेने वाले ग्राहकों में ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ोतरी की जा सके, और ज़्यादा रकम ऋण पर दी जा सके।

इसी तरह यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट में बढ़ोतरी करेगा, तो बैंकों के लिए ऋण लेना महंगा हो जाएगा, और वे भी अपने ग्राहकों से वसूल की जाने वाली ब्याज दरों को बढ़ा देंगे। जैसा इसके नाम से ही साफ है, यह रेपो रेट से उलट होता है। जब कभी बैंकों के पास दिन-भर के कामकाज के बाद बड़ी रकमें बची रह जाती हैं, वे उस रकम को रिजर्व बैंक में रख दिया करते हैं, जिस पर आरबीआई उन्हें ब्याज दिया करता है। अब रिजर्व बैंक इस ओवरनाइट रकम पर जिस दर से ब्याज अदा करता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

दरअसल, रिवर्स रेपो रेट बाज़ारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है। जब भी बाज़ारों में बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज़्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकमें उसके पास जमा करा दें, और इस तरह बैंकों के कब्जे में बाज़ार में छोड़ने के लिए कम रकम रह जाएगी। देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत प्रत्येक बैंक को अपनी कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है, जिसे कैश रिजर्व रेशो अथवा नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) कहा जाता है। ऐसे नियम इसलिए बनाए गए हैं, ताकि यदि किसी भी वक्त किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्ताओं को रकम निकालने की ज़रूरत महसूस हो, तो बैंक पैसा चुकाने से इन्कार न कर सके। सीआरआर ऐसा साधन है, जिसकी सहायता से आरबीआई बिना रिवर्स रेपो रेट में बदलाव किए बाज़ार से नकदी की तरलता को कम कर सकता है।

गौरतलब है कि मौद्रिक नीति समिति ने जून में हुई पिछली समीक्षा बैठक में मुख्य ब्याज दर रेपो को 0.25 प्रतिशत बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत कर दिया था। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि खरीफ फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि करने के सरकार के फैसले से मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है। इसके साथ साथ कच्चे तेल की कीमतें भी बढ़कर तीन वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी। कच्चे तेल के लिए आयात पर भारी निर्भरता के कारण इससे भी मुद्रास्फीति और चालू खाता घाटा बढ़ने का जोखिम है।

भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी शोध रिपोर्ट में कहा कि इस बार आरबीआई दरों में वृद्धि की नहीं करेगा। उसका मानना है कि अगस्त में दरों पर फैसला करना बहुत मुश्किल भरा होगा, फिर भी उम्मीद है कि नीतिगत दरों को फिलहाल वर्तमान स्तर पर बनाए रखने का विकल्प ही वेहतर होगा। एडलवाइस सिक्योरिटीज ने कहा है, "हम एमपीसी से दरों में कोई बदलाव किए बिना तटस्थ रुख बनाए रखने की उम्मीद करते हैं।' वैश्विक वित्तीय सेवा प्रदाता डीबीएस ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि आरबीआई नीतिगत दरों में अगस्त में और बढ़ोतरी कर सकता है। निजी क्षेत्र के एचडीएफसी बैंक का मानना है कि रिवर्ज बैंक का निर्णय कुछ भी हो सकता है लेकिन अधिक संभावना यह है कि समिति फलहाल दरों को वर्तमान स्तर पर स्थिर रखेगी।

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