नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक कार्यक्रम में कहा कि यदि कर स्तर भविष्य में 'रेवेन्यू न्यूट्रल प्लस' पर पहुंच जाता है, यानी तय सीमा से अधिक राजस्व आता है तो वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के स्लैब कम किए जा सकते हैं। जेटली ने नेशनल एकेडमी ऑफ कस्टम्स, इनडायरेक्ट टैक्सेज एंड नारकोटिक्स (एनएसीआईएन) के स्थापना दिवस के मौके पर यह बात कही।
जेटली के मुताबिक, मौजूदा जीएसटी प्रणाली के कर स्लैब तभी कम किए जाएंगे, जब राजस्व निर्धारित सीमा से अधिक आएगा। जेटली ने सरकार के राजस्व को सभी विकास गतिविधियों की जीवनरेखा कहा है। राज्य के अधिक संसाधन राष्ट्रीय सुरक्षा, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचागत विकास के लिए उपयोग में लाए जा सकते हैं।
जेटली ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, 'अब, जब लोगों के पास विकास की मांग करने का अधिकार है तो उनके ऊपर विकास के लिए जरूरी चीजों के लिए भुगतान करने की भी जिम्मेदारी है और इस पैसे को समाज और देश के व्यापक लाभ के लिए ईमानदारी से खर्च करने की जरूरत है।'
उन्होंने कहा, 'समाज में जहां बड़े पैमाने पर वित्तीय घाटा है, एक ऐसा समाज जो पारंपरिक तौर पर कर का भुगतान नहीं करने वाला समाज है। ऐसे समाज में आज बदलाव आ रहा है, यहां लोग धीरे-धीरे कर के अधिक अनुकूल होने के गुण को पहचानने लगे हैं और यही उन कारणों में से एक है कि हमने एकीकृत कर (जीएसटी) प्रणाली को चुना है।'
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने एक जुलाई से देशभर में सभी अप्रत्यक्ष करों के स्थान पर एक नई कर प्रणाली जीएसटी लागू की है। जेटली कहते हैं, 'हमारे पास सुधार की गुंजाइश है। एक बार 'रेवेन्यू न्यूट्रल प्लस' पर पहुंचने के बाद यानी तय सीमा से अधिक राजस्व आने के बाद जीएसटी के स्लैब घटाए जाएंगे।
जेटली ने कहा कि अप्रत्यक्ष करों से सभी प्रभावित होते हैं और लोगों द्वारा सर्वाधिक इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुएं सबसे कम कर की श्रेणी में रखी गई हैं। मौजूदा समय में देश में कर के चार स्लैब यानी पांच प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत हैं।
इसके साथ ही जीएसटी लागू होने के शुरुआती पांच वर्षो में राज्य सरकारों को होने वाले राजस्व घाटे की भरपाई के लिए कार, बोतलबंद पेय, तंबाकू उत्पाद जैसे लग्जरी सामानों पर अतिरिक्त कर का भी प्रावधान है।
जीएसटी के तहत 81 फीसदी सामानों पर 18 फीसदी या इससे कम कर है और सिर्फ 19 फीसदी सामानों पर अधिकतम 28 फीसदी कर है।