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नई दिल्ली: बुलेट ट्रेन की दौड़ हर जगह सफल नहीं रही है। पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापानी समकक्ष शिंजो आबे के साथ अहमदाबाद में भारत के पहले बुलेट ट्रेन प्रॉजेक्ट की नींव रखी। इस बीच भारत में भी बुलेट ट्रेन की आवश्यकता और इसकी सफलता पर बहस छिड़ी हुई है। ऐसे में यह जानना उपयोगी है कि ताइवान में बुलेट ट्रेन प्रॉजेक्ट क्यों असफल हो गया।

ताइवान की कुछ प्राइवेट कंपनियों ने 90 के दशक के शुरुआती सालों में प्रॉजेक्ट की शुरुआत की और 2007 में यहां पहली बुलेट ट्रेन दौड़ी। यह प्रॉजेक्ट जापान की शिनकासेन टेक्नॉलजी पर ही आधारित था, जिसका भारत में भी इस्तेमाल किया जाएगा। प्रॉजेक्ट पर 14.3 अरब डॉलर (करीब 90 हजार करोड़ रुपये) खर्च हुए। सात साल बाद 2014 में सरकार ने इशारा किया कि रेल ऑपरेटर दिवालिया हो सकता है। कुल घाटा 46.6 बिलयन न्यू ताइवान डॉलर्स यानी 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर (9600 करोड़ रुपये) तक पहुंच चुका था।

चूंकि पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का महत्वपूर्ण अंग होने की वजह से इसे बचाया जाना था, ताइवान सरकार ने 1 अरब डॉलर की सहायता प्रदान की। इससे ऑपरेटर के शेयरों के दाम 60 फीसदी तक घट गए।

गलती कहां हुई?

मूल्यह्रास और ब्याज का बोझ कंपनियों पर भारी पड़ने लगा. लागत और सवारियों का अनुमान भी गलत निकला। पहले भविष्यवाणी की गई थी कि 2008 में प्रतिदिन 2,40000 यात्री बुलेट ट्रेन की सवारी करेंगे, लेकिन 2015 में प्रतिदिन का ट्रैफिक 1,40000 से भी कम था, यानी उम्मीद से आधा. ताइवान के धीमे इकॉनमिक ग्रोथ का भी इस पर बुरा असर पड़ा। कंपनी को बेलआउट पैकेज के बदले किराया घटना पड़ा, जोकि बैलेंस शीट के लिए ठीक नहीं था। एक साल बाद इसने तीन नए स्टेशनों की शुरुआत की, यह कदम भी इसके वित्तीय स्थिति के लिए गलत बताया गया।

भारत के बुलेट ट्रेन प्रॉजेक्ट, जिसमें 80 फीसदी पैसा जापान ने 0.1 फीसदी ब्याज पर दिया है, की तुलना ताइवान के प्रॉजेक्ट से नहीं की जा सकती है। यात्रियों की संख्या की बात करें तो ताइवन की तरह यहां यह समस्या नहीं आनी चाहिए क्योंकि अहमदाबाद और मुंबई का यह रूट इंडस्ट्रीयल और कॉमर्शल इलाका है। ब्याज का भुगतान भी बड़ी समस्या नहीं होनी चाहिए क्योंकि जापान इस पर ब्याज 15 साल बाद लगाना शुरू करेगा और दर भी काफी कम है। हालांकि लागत में वृद्धि भारतीय बुलेट ट्रेन प्रॉजेक्ट के लिए भी समस्या हो सकती है क्योंकि इतने बड़े कंस्ट्रक्शन प्रॉजेक्ट को लंबे समय में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। निर्माण में लागत अधिक आई तो टिकट भी महंगे होंगे और इसका असर यात्रियों की संख्या पर पड़ सकता है।

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