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नई दिल्ली: भारती एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया सहित निजी क्षेत्र की छह दूरसंचार कंपनियों ने 2010—11 से 2014—15 के दौरान अपने राजस्व को 61,064.5 करोड़ रुपये कम कर दिखाया। इसके चलते उनकी ओर से सरकार को 7,697.6 करोड़ रुपये का कम भुगतान किया गया। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की संसद में पेश ताजा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। कैग ने कहा कि कंपनियों द्वारा अपनी आय कम करके दिखाने की वजह से सरकार को 7,697.62 करोड़ रुपये का कम भुगतान किया गया। इस कम भुगतान पर मार्च, 2016 तक 4,531.62 करोड़ रुपये का ब्याज बनता है। पांच आपरेटरों भारती एयरटेल, वोडाफोन इंडिया, आइडिया सेल्युलर, रिलायंस कम्युनिकेशंस और एयरसेल के मामले में कैग की यह आडिट रपट 2010-11 से 2014-15 की अवधि के लिए तथा सिस्तेमा श्याम के लिए यह 2006-07 से 2014-15 के संबंध में है। कैग के अनुसार एयरटेल पर 2010-11 से 2014-15 के दौरान सरकार के लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम प्रयोग शुल्क (एसयूसी) के मद का बकाया 2,602.24 करोड़ रुपये और उस पर ब्याज का 1,245.91 करोड़ रुपये बनता है।

वोडाफोन पर कुल बकाया 3,331.79 करोड़ रुपये बनता है, जिसमें ब्याज का 1,178.84 करोड़ रुपये है। इसी तरह आइडिया पर कुल बकाया 1,136.29 करोड़ रुपये का है। इसमें ब्याज 657.88 करोड़ रुपये बैठता है। अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 1,911.17 करोड़ रुपये का बकाया है। इसमें 839.09 करोड़ रुपये ब्याज के बैठते हैं। एयरसेल पर बकाया 1,226.65 करोड़ रुपये और सिस्तेमा श्याम पर 116.71 करोड़ रुपये का है। नयी दूरसंचार नीति के तहत लाइसेंसधारकों को अपने समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) का एक निश्चत हिस्सा सरकार को सालाना लाइसेंस शुल्क के रूप में देना होता है। इसके अलावा मोबाइल आपरेटरों को स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (एसयूसी) भी देना होता है। कैग की यह रपट ऐसे समय आई है जबकि बड़ी दूरसंचार कंपनियों को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। रिलायंस जियो के प्रवेश के बाद स्थापित आपरेटरों की आमदनी और मुनाफे पर काफी दबाव है। दूरसंचार उद्योग पर विभिन्न वित्तीय संस्थानों और बैंकों का 6.10 लाख करोड़ रुपये का बकाया है।

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