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बेल्जियम: डोकलाम में सड़क निर्माण को लेकर भारत और चीन के बीच जबरदस्त विवाद रहा है। डोकलाम में भारतीय और चीनी सैनिकों के आमने-सामने होने के छह साल बाद भूटान के प्रधानमंत्री ने बड़ा बयान दिया है। भूटान के पीएम लोटे शेरिंग ने कहा है कि बीजिंग का उच्च ऊंचाई वाले पठार पर विवाद का समाधान खोजने में बराबर की हिस्सेदारी है। भूटान के पीएम ने कहा कि इस क्षेत्र को लेकर नई दिल्ली सरकार का मानना ​​है कि चीन ने यहां अवैध रूप से कब्जा कर लिया है। भूटान के प्रधानमंत्री के इस ताजा बयान ने भारत की चिंता बढ़ा दी है।

बेल्जियम के दैनिक अखबार 'ला लिबरे' के साथ एक इंटरव्यू में भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने ये बातें कही। उन्होंने कहा, "समस्या को हल करना अकेले भूटान पर निर्भर नहीं है। हम तीन देश हैं। कोई बड़ा या छोटा देश नहीं है। तीनों समान देश हैं।"

क्षेत्रीय विवाद का समाधान खोजने में चीन की हिस्सेदारी पर भूटानी प्रधानमंत्री का बयान नई दिल्ली के लिए चिंता का विषय है।

भारत हमेशा से डोकलाम में चीन के विस्तार का विरोध करता रहा है, क्योंकि ये पठार संवेदनशील सिलीगुड़ी कॉरीडोर के करीब है। जमीन का वह संकरा भाग भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को शेष देश से अलग करता है।

भूटान के प्रधानमंत्री ने इंटरव्यू में कहा, "हम तैयार हैं। जैसे ही अन्य दो पक्ष भी तैयार हों, हम चर्चा कर सकते हैं।'' भूटान के पीएम का यह बयान इस बात का संकेत है कि भूटान भारत और चीन के साथ ट्राई-जंक्शन की स्थिति पर बातचीत करने को तैयार है।

शेरिंग का यह बयान 2019 में 'द हिंदू' को दिए गए बयान के उलट है। 2019 में शेरिंग ने कहा था कि 'किसी भी पक्ष' को तीन देशों के बीच मौजूदा ट्राई-जंक्शन पॉइंट के पास 'एकतरफा' कुछ भी नहीं करना चाहिए। दशकों से, वह ट्राई-जंक्शन पॉइंट इंटरनेशनल मैप में दिखाया जाता रहा है। यह बटांग ला नाम की जगह पर स्थित है। चीन की चुम्बी घाटी बटांग ला के उत्तर में है, जबकि भूटान दक्षिण-पूर्व में और भारत का सिक्किम राज्य पश्चिम में स्थित है।

चीन चाहता है कि ट्राई-जंक्शन को बटांग ला से लगभग 7 किमी दक्षिण में माउंट जिपमोची नाम की चोटी पर शिफ्ट किया जाए। अगर ऐसा होता, तो पूरा डोकलाम पठार कानूनी रूप से चीन का हिस्सा बन जाता। भारत इसका पुरजोर विरोध करता रहा है।

डोकलाम में साल 2017 के दौरान भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच दो महीने से अधिक समय तक तनावपूर्ण गतिरोध रहा। भारतीय सैनिकों ने डोकलाम पठार में चीन को एक सड़क का विस्तार करने से रोका था। चीन अवैध रूप से माउंट गिपमोची और एक निकटवर्ती पहाड़ी की दिशा में इस सड़क का विस्तार कर रहा था। भारतीय सेना ने साफ किया था कि चीनी सेना को झम्फेरी पर चढ़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे उन्हें सिलीगुड़ी कॉरीडोर के लिए एक स्पष्ट दिशा मिल जाएगी।

2017 में डोकलाम संकट के समय पूर्वी सेना के कमांडर रहे (रिटायर्ड) लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी ने कहा, 'भारत पर स्पष्ट सुरक्षा प्रभाव है। ट्राई-जंक्शन पॉइंट को स्थानांतरित करने के लिए चीन का कोई भी प्रयास भारतीय सशस्त्र बलों के लिए अस्वीकार्य होगा। यथास्थिति के एकतरफा व्यवधान के चीनी प्रयास प्रमुख चिंता का विषय है।'

2017 के बाद से जब चीन की सेना डोकलाम में गतिरोध पॉइंट से पीछे हटने के लिए सहमत हुए, तो उन्होंने अमो चू नदी घाटी के साथ भूटानी क्षेत्र में खुदाई की। ये जगह डोकलाम के पास और सीधे पूर्व में स्थित है। चीनी सेना ने यहां कई गांवों का निर्माण किया और सड़कें बनाए। सड़क उस क्षेत्र तक गई, जो हमेशा भूटान का हिस्सा रहा है। भूटान के ऑफिशियल मैप में ये स्पष्ट है। एनडीटीवी ने अपने पहले के रिपोर्ट्स में चीन के इस निर्माण के डिटेल और सैटेलाइट तस्वीरें प्रकाशित किए हैं।

भूटान के पीएम लोटे शेरिंग ने बेल्जियम के अखबार लिब्रे बेल्जिक से कहा, 'जिन 10 गांवों के बारे में खबरें आई थीं, वो चीन में नहीं हैं। हमने साफ कहा है कि भूटान की सीमा में कोई घुसपैठ नहीं हुई है।' नवंबर 2020 में सैटेलाइट के आधार पर रिपोर्ट्स आई थीं कि भूटाने की सीमा के दो किलोमीटर अदंर चीन ने गांव बना लिया है। भूटान की सरकार की तरफ से चीन के 10 गांवों पर अभी तक कोई भी टिप्‍पणी नहीं की गई थी।

चीन पर भारत के प्रमुख रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ डॉ. ब्रह्मा चेलानी कहते हैं, ''भूटान के प्रधानमंत्री के बयान से पता चलता है कि अपनी साख बचाने के लिए भूटान दावा कर रहा है कि जिन क्षेत्रों पर चीन ने चुपके से कब्जा कर लिया है, वे भूटानी क्षेत्र नहीं हैं, लेकिन उनका यह बयान भूटानी क्षेत्रों में चीनी घुसपैठ को और प्रोत्साहित कर सकता है।"

हालांकि, अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि भूटान उत्तर में अपने क्षेत्रों को बनाए रखने के प्रयास में अपनी पश्चिमी सीमा के क्षेत्रों को सौंपने के लिए तैयार है या नहीं। पश्चिम में भूटानी क्षेत्र पर चीनी नियंत्रण को वैध बनाने का कोई भी कदम सीधे तौर पर भारत के सुरक्षा हितों के खिलाफ होगा।

इस साल जनवरी में चीनी और भूटानी विशेषज्ञ कुनमिंग में मिले और सीमा वार्ता पर एक समझौते पर पहुंचने की दिशा में काम करने पर सहमत हुए। दोनों पक्षों ने अब तक 20 से अधिक दौर की वार्ता की है। दोनों देश कथित तौर पर 'सकारात्मक सहमति' पर पहुंचने के लिए काम कर रहे हैं।

भूटान के पीएम कहते हैं, "हम चीन के साथ बड़ी सीमा समस्याओं का सामना नहीं कर रहे हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों का अभी तक सीमांकन नहीं किया गया है।" उन्होंने कहा, "एक या दो और बैठकों के बाद हम शायद एक विभाजक रेखा खींचने में सक्षम होंगे।''

बहरहाल, इस पूरे मामले पर नई दिल्ली सरकार बारीकी से नजर बनाए हुए है।

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