मॉस्को: सोवियत रूस के नेता मिखाइल गोर्बाचेव का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले गोर्बाचेव का लंबी बीमारी के बाद निधन हुआ है। मिखाइल गोर्बाचेव ने बिना रक्तपात के शीत युद्ध को समाप्त किया, लेकिन वो सोवियत संघ के पतन को रोकने में विफल रहे। रूसी समाचार एजेंसियों ने अस्पताल के अधिकारियों के हवाले से उनकी मौत की पुष्टि की।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक साल 1989 में साम्यवादी पूर्वी यूरोप के सोवियत ब्लॉक राष्ट्रों में लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शन तेज हो गए, तब भी उन्होंने बल प्रयोग करने से परहेज किया। वहीं पिछले क्रेमलिन नेताओं ने 1956 में हंगरी और 1968 में चेकोस्लोवाकिया में विद्रोह को कुचलने के लिए टैंक भेजे थे। लेकिन विरोधों ने सोवियत संघ के 15 गणराज्यों में स्वायत्तता की आकांक्षाओं को हवा दी, जो दो वर्षों में अराजक तरीके से फैलने लगी। उस पतन को रोकने के लिए गोर्बाचेव ने संघर्ष किया।
गोर्बाचेव केवल 53 वर्ष की आयु में साल 1985 में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने। इस पद पर वे 1991 तक बने रहे जब पार्टी खुद भंग हो गई और जल्द ही सोवियत संघ का पतन हो गया।
उनकी 'ग्लासनोस्ट' की नीति - मुक्त भाषण - ने पार्टी और राज्य की पहले अकल्पनीय आलोचना की अनुमति दी, लेकिन उन राष्ट्रवादियों को भी प्रोत्साहित किया जिन्होंने लातविया, लिथुआनिया, एस्टोनिया और अन्य जगहों के बाल्टिक गणराज्यों में स्वतंत्रता के लिए दबाव डालना शुरू किया।
कई रूसियों ने गोर्बाचेव को उस उथल-पुथल के लिए कभी माफ नहीं किया, जो उनके सुधारों ने शुरू की। 30 जून को अस्पताल में गोर्बाचेव का दौरा करने के बाद, उदारवादी अर्थशास्त्री रुस्लान ग्रिनबर्ग ने सशस्त्र बलों के समाचार आउटलेट ज़्वेज़्दा से कहा, "उन्होंने हमें सभी स्वतंत्रता दी- लेकिन हम नहीं जानते कि इसके साथ क्या करना है।"