मास्को: यूक्रेन और रूसी सेना में घमासान के बीच एक राहत भरी खबर आई है। यूक्रेन सरकार ने रूस के साथ उसके समर्थक देश बेलारूस में बातचीत का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है। इससे पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेवेंस्की ने रूस से बातचीत से इंकार कर दिया था। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर उस देश में वार्ता कैसे हो सकती है, जहां से उन पर हमला किया गया हो। बेलारूस भी यूक्रेन की तरह रूस का पड़ोसी देश है और वो लगातार रूस का समर्थन करता रहा है। पश्चिमी देशों ने रूस के साथ हमले में समर्थन देने वाले बेलारूस पर भी प्रतिबंध लगाए हैं। यूक्रेन पहले तुर्की, पोलैंड समेत कई अन्य देशों में वार्ता का विकल्प पेश कर रहा था। इस पर रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने चेताया भी था कि यूक्रेन वार्ता की संभावनाओं को खत्म करने का प्रयास कर रहा है। पुतिन ने कथित तौर पर अपनी परमाणु हथियारों के संचालन से जुड़ी सैन्य टुकड़ी को भी अलर्ट पर रहने को कहा है।
रूस ने बातचीत का यह न्योता ऐसे वक्त दिया है, जब अमेरिका और पश्चिमी देशों ने उस पर आर्थिक प्रतिबंध तो थोपे ही हैं, साथ ही यूक्रेन को सैन्य मदद देने का निर्णय़ भी लिया है।
जर्मनी ने यूक्रेन को 1000 एंटी टैंक हथियार औऱ 500 स्टिंगर मिसाइलें देने का निर्णय़ किया है। अमेरिका पहले ही यूक्रेनी सेना के लिए 35 करोड़ डॉलर की सैन्य मदद का एलान कर चुका है। पश्चिमी देशों ने रूस को अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग लेनदेन के लिए जरूरी वित्तीय सिस्टम स्विफ्ट से भी बाहर कर दिया है। इसका बुरा असर उसकी अर्थव्यवस्था पर आने वाले समय में देखने को मिल सकता है।
यूक्रेन पर हमले के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत कई बड़े नेताओं से बातचीत हुई है। पीएम मोदी ने भी पुतिन से बातचीत में हिंसा को तत्काल रोकने की अपील की थी और गतिरोध के शांतिपूर्ण समाधान पर जोर दिया था। हालांकि सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पर मतदान के दौरान भारत गैरहाजिर रहा था। उसने निंदा प्रस्ताव की वोटिंग में हिस्सा न लेने पर कहा था कि भारत इस संकट के समाधान के लिए सभी पक्षों के साथ बातचीत का रचनात्मक रास्ता खुला रखना चाहता है।