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टोक्यो: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जारी तनाव के बीच जापान की आने वाले दिनों में क्या भूमिका रहेगी, इसको लेकर अटकलें गहरा गई हैं। नए प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने शुरुआती संकेत यह दिया है कि उनकी चीन के साथ टकराव बढ़ाने में रुचि नहीं है। इसके विपरीत उनकी प्राथमिकता जापान के आर्थिक पुरुद्धार है। लेकिन उनकी सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) ने अपने ताजा चुनाव घोषणापत्र में रक्षा खर्च में भारी बढ़ोतरी का वादा किया है।

जापान में डियेट (संसद) के लिए चुनाव 31 अक्तूबर को होगा। टोक्यो के अखबार जापान टाइम्स के मुताबिक एलडीपी ने चुनाव के लिए अपना घोषणापत्र तैयार कर लिया है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक जापान में चीन की बढ़ रही सैनिक ताकत और उत्तर कोरिया के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों से चिंता लगातार गहरा रही है। इसकी झलक एलडीपी के घोषणापत्र में मिली है।

एलडीपी के इस वादे को बहुत अहम माना जा रहा है कि अपने शासन के अगले कार्यकाल में वह रक्षा खर्च में बढ़ोतरी करेगी।

एलडीपी ने कहा है कि अब उसका मकसद रक्षा खर्च को जापान के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के दो फीसदी तक ले जाने का है। हाल के दशकों में यह खर्च जीडीपी के एक फीसदी के बराबर रहा है। यानी नए कार्यकाल में एलडीपी ने रक्षा खर्च को दोगुना करने का इरादा जताया है।

संसदीय चुनाव में एलडीपी की जीत तय मानी जा रही है। जापान की राजनीतिक व्यवस्था में चुनावों में ज्यादा अनिश्चय नहीं रहता। बीते 66 साल में लगभग साढ़े 61 साल तक एलडीपी ही सत्ता में रही है। अखबार जापान टाइम्स ने एलडीपी के घोषणापत्र के बारे में छापी अपनी एक रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि पिछले शुक्रवार को किशिदा ने बतौर प्रधानमंत्री चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से अपनी पहली बातचीत के दौरान बातचीत के महत्व पर जोर दिया था। उन्होंने मतभेदों के शांतिपूर्ण समाधान पर सहमति जताई थी।

लेकिन पार्टी के घोषणापत्र से उससे अलग संकेत मिला है। एलडीपी ने कहा है कि उसकी अगली सरकार जापान की प्रतिरक्षा संबंधी ताकत बढ़ाएगी। इसके लिए वह इंटरसेप्ट बैलिस्टिक मिसाइलों को ‘दुश्मन के क्षेत्र में’ तैनात करेगी। इसमें चीन विरोधी एक और भावना का परिचय देते हुए कहा गया है कि जापान कॉम्प्रिहेन्सिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांसपैसिफिक पार्टरनरशिप (सीपीटीपीपी) में ताइवान के शामिल होने का स्वागत करता है। गौरतलब है कि पिछले महीने चीन और ताइवान दोनों ने इस संधि की सदस्यता के लिए अर्जी दी। चीन ने ताइवान को सदस्यता देने का विरोध किया है। उसका दावा है कि ताइवान उसका ही प्रदेश है।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि चुनाव घोषणापत्र में दिखा रुख चुनावी जरूरतों की वजह से भी हो सकता है। इसके अलावा मुमकिन है कि चीन के प्रति नरमी की किशिदा की सोच को लेकर पार्टी में गहरा मतभेद हो। पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि घोषणापत्र में आर्थिक मामलों में किशिदा की सोच को जगह मिली है। इसमें उन कंपनियों को टैक्स रियायत देने का वादा किया गया है, जो अपने कर्मचारियों के वेतन बढ़ाएंगी।

 

 

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