इस्लामाबाद: अपने देश में जड़ फैलाते हुए आतंकवाद के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हुए पाकिस्तान ने 5000 संदिग्ध आतंकियों के खातों को सील कर दिया है। इस कदम से आतंकियों के करीब 30 लाख डॉलर फंस गए हैं। माना जा रहा है कि इस्लामाबाद ने यह कदम अंतरराष्ट्रीय जांच से बचने के लिए उठाया है। इसके बावजूद आतंकियों की फंडिंग पर नजर रखने वाली संगठन पाकिस्तान की स्थिति की जांच कर सकती है। वित्तीय एक्शन कार्य बल संगठन के कम्युनिकेशन विभाग की एलेक्सेंड्रा विजमेंगा-डेनियल के अनुसार अगले महीने स्पेन में अपने उच्च जोखिम और असहयोग क्षेत्राधिकार की समीक्षा को अपडेट करेगा। हालांकि उन्होंने इस संबंध में विस्तृत जानकारी नहीं दी। वर्ष 2015 में इसी तरह का कदम उठाने के बाद पाकिस्तान को जांच से छूट मिल गई थी। तब उसने मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग के खिलाफ कदम उठाया था। हालांकि लश्कर-ए-ताइबा जैसे आतंकी संगठनों के नए नाम से दोबारा सक्रिय होने की वजह से चिंता फिर से बढ़ गई थी। यही नहीं जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन खुले में पैसा जुटा रहे हैं। इस्लामाबाद स्थित पाकिस्तान इंस्टीट्यूट आॅफ पीस स्टडी के निदेशक मोहम्मद अमीर राणा के मुताबिक सरकार को इन संगठनों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे।
इसके अलावा पाकिस्तान के नेशनल काउंटर टेरेरिज्म अथॉरिटी (नाक्टा) के निदेशक इशान गनी ने मानते हैं कि सरकार की प्रतिबद्धता की कमी से आतंकी सगंठन सिर उठा रहे हैं। वह कहते हैं कि मौजूदा लिस्ट पुरानी हो चुकी है और बहुत से संदिग्ध आतंकी या तो मर चुके हैं या फिर जेल में हैं। इस्लामाबाद के जिन्ना इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक हसन अकबर का मानना है कि पाकिस्तान ने मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर काफी तरक्की की है और सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं दुबई और अमेरिका में भी आतंकियों का बिजनेस बंद हुआ है। हालांकि उनका कहना है कि कई संगठन बंद किए गए हैं, लेकिन प्रतिबंधित संगठन दूसरे नामों से शुरू हो रहे हैं। छोटे कारोबारियों की ओर से अभी भी आतंकियों को फंडिंग जारी है। नाक्टा के इशान गनी के मुताबिक पाकिस्तान को अपनी पॉलिसी में बदलाव की जरूरत है। ऐसी पॉलिसी बनानी चाहिए, जिसके मुताबिक 10 लाख रुपये से ज्यादा ट्रांसफर करने पर लेनदेन का पूरा स्रोत बनाना चाहिए। वर्तमान में आप करोड़ों रुपये लेकर कार में जा सकते हैं और कोई आपसे कोई सवाल नहीं पूछेगा। इसे बदलना चाहिए। मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए 35 देशों की सरकारों ने मिलकर 1989 में इस संगठन का गठन किया था। 9/11 के हमले के बाद इस संगठन ने आतंकियों की फंडिंग को रोकने के लिए भी प्रयास करने शुरू कर दिए थे। अगर यह संगठन किसी देश को मनी लान्ड्रिंग का स्वर्ग मानते हुए काली सूची में डालता है, तो इससे उस देश को अंतरराष्ट्रीय कर्ज लेने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।