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वाशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को पेरिस जलवायु परिवर्तन करार से अलग होने का ऐलान कर दिया है। ट्रंप ने कहा कि वो नए सिरे से एक नया समझौता करेंगे जिसमें अमरीकी हितों की रक्षा उनका मकसद होगा। राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि वो एक ऐसा समझौता करना चाहेंगे जो अमरीका के औद्योगिक हितों की रक्षा करता हो और लोगों की नौकरियां बचाता हो। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ट्रंप ने वादा किया था कि वह अमेरिका को पेरिस करार से अलग करेंगे। यह उनके प्रमुख चुनावी वादों में शामिल था। उन्होंने ट्वीट किया, मैं गुरुवार को तीन बजे दिन में पेरिस करार पर अपने फैसले की घोषणा करूंगा। व्हाइट हाउस रोज गार्डेन। इससे पहले अमेरिका के दो समाचार समूहों, एक्सिस और सीबीएस न्यूज ने खबर दी थी कि ट्रंप ने करार से अलग होने का फैसला कर लिया है। ट्रंप प्रशासन इस बारे में विश्व नेताओं को सूचित कर रहा है। साल 2015 में पेरिस करार पर 195 देशों ने सहमति जताई थी। सीरिया और निकारागुआ दो मात्र ऐसे देश हैं जिन्होंने इस करार पर हस्ताक्षर नहीं किया है। ट्रंप की घोषणा का जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई पर दूरगामी असर पड़ने वाला है। खासकर भारत एवं चीन जैसे देशों में इसका असर होगा। अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला देश है। अमेरिकी राष्ट्रपति अक्सर कहते हैं कि अमेरिका ने पेरिस में सही सौदा नहीं किया।

पेरिस करार पर भारत समेत 190 से अधिक देशों ने सहमति जताई थी। इसकी पहल ट्रंप के पूववर्ती राष्ट्रपति बराक ओबामा ने खुद की थी। पेरिस करार से अमेरिका को बाहर निकालने की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की योजना पर यूरोपीय आयोग के नेताओं ने नाराजगी जताई है। यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष जीन क्लॉड जंकर ने कहा, अगर राष्ट्रपति ट्रंप पेरिस करार से अपने देश को बाहर रखने का फैसला लेते हैं तो यह यूरोप का कर्तव्य है कि वह अमेरिका के सामने खड़ा रहे। वह बताए कि ऐसा नहीं चल सकता। अमेरिकी इस करार से बाहर नहीं रह सकते। इस करार से हाथ खींचने में तीन-चार साल लगेंगे। उन्होंने कहा, अंतरराष्ट्रीय करारों में लिखी हर बात फर्जी खबर नहीं होती। इसी हफ्ते अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करेगा पेरिस करार से अमेरिका के निकलने की चिंता किए बिना यूरोपीय संघ और चीन इस करार पर इसी हफ्ते अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करेंगे। यूरोपीय संघ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने गुरुवार को यह जानकारी दी। यूरोपीय संघ का यह रुख ऐसे समय सामने आया है जिससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को कहा था कि पेरिस करार को छोड़ना अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए जीत होगी। इस बीच, मेड्रिड में भारत और स्पेन ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता जताई और क्योटो तथा पेरिस करार को लागू करने के लिए सहयोग देने पर जोर दिया। यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा सम्मेलन के तहत किया गया एक वैश्विक करार है। दिसंबर 2015 में पेरिस में किए गए इस करार का मूल मकसद जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करना, अनुकूलन करना और इन कार्यों के लिए वित्तीय व अन्य उपाय करना है। लगभग सभी देशों ने इस पर सहमति जताई है। भारत इसे मंजूरी दे चुका है।

साल 2100 के लिए प्रतिबद्धताएं

-02 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को, औद्योगिक युग से पूर्व के मुकाबले

-2010 के मुकाबले 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 40 से 70 फीसदी कम करना और 2100 में शून्य के स्तर तक पहुंचना

-01 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है पृथ्वी का तापमान औद्योगिकीकरण आरंभ होने के बाद से अब तक -02 डिग्री से अधिक की तापमान बढ़ोतरी से पृथ्वी की जलवायु में घातक बदलाव आने की आशंका है

अमेरिका सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले देशों में शामिल है। पेरिस करार के तहत उसको अपना कार्बन उत्सर्जन बड़े स्तर पर कम करना होगा। इसके लिए उसको न केवल तकनीकी उन्नति करनी होगी बल्कि बड़ी राशि खर्च करनी होगी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को चिंता है कि इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है। अमेरिका के विपरीत खासकर विकासशील देशों का कहना है कि उन्हें उनकी ऊर्जा जरूरतों के लिए फिलहाल कार्बन उत्सर्जन बढ़ाने की अनुमति मिलनी चाहिए। साथ ही विकसित देशों से पर्यावरण अनुकूल तकनीक और आर्थिक मदद मिलनी चाहिए। अमेरिका ऐसी जिम्मेदारियों से बचना चाहता है।

फिलहाल बाध्यकारी नहीं

-55 फीसदी कार्बन उत्सर्जन करने देशों की मंजूरी मिलने के बाद यह बाध्यकारी हो जाएगा

-62 देश भारत समेत इसे दे चुके हैं मंजूरी, जो लगभग 48 फीसदी कार्बन उत्सर्जन करते हैं कार्बन की कालिमा

-अमेरिका प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा अर्थात 20 टन कार्बन उत्सर्जन करता है

-भारत तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है चीन और अमेरिका के बाद

-वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का करीब सात फीसदी भारत अकेले करता है

-भारत प्रति व्यक्ति 2.5 टन से कम कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जित करता है

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