लखनऊ: बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने महागठबंधन पर स्थिति साफ की है। उन्होंने कहा है कि सीटों के बंटवारे से पहले वह कोई भी मंच साझा नहीं करेंगी। इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है, इसलिए पटना में 27 अगस्त को लालू प्रसाद यादव द्वारा आयोजित रैली में वह शामिल नहीं होंगी। इधर खबर ये भी है कि सोनिया गांधी भी इस रैली में नहीं जाएंगी। लालू यादव की बेचैनी बढ़ती नजर आ रही है। मायावती ने पटना रैली में शामिल होने की बात पर कहा अगर रैली सफल हो भी गई तो बाद में इन सेकुलर पार्टियों के बीच टिकट बंटवारे को लेकर घमासान होगा। इस विश्वासघात का फायदा भाजपा को मिल सकता है। बसपा गठबंधन के खिलाफ नहीं है, लेकिन इसमें पूरी ईमानदारी की जरूरत है। बिहार में हुआ पिछला गठबंधन क्यों टूटा, यह सभी को पता है। बसपा इससे सबक ले चुकी है और ठोस रणनीति के साथ फैसला करेगी। बसपा क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टी के साथ कोई मंच तभी साझा करेगी, जब तय हो जाए की गठजोड़ वाली पार्टियों के हिस्से में कितनी सीटें आएंगी। गठबंधन का बनना-बिगड़ना सीटों के बंटवारे पर उन्होंने कहा कि किसी भी गठबंधन का बनना-बिगड़ना सीटों के बंटवारे पर ही तय होता है।
सेक्युलर फ्रन्ट में बसपा के शामिल होने या न होने को लेकर वह स्थिति साफ कर देना चाहती हैं। मीडिया में इसको लेकर पिछले कई दिनों से बसपा के बारे में भ्रान्तियां पैदा की जा रही हैं, जिसे स्पष्ट करना जरूरी है। पटना में आयोजित रैली में देश की सभी सेक्युलर पार्टियों को बुलाया गया है। बसपा को शामिल करने की विशेष तौर पर कोशिश की जा रही है। बसपा पर पूरे देश की निगाहें भी लगी हुई हैं। मायावती ने कहा कि बसपा अपने सिद्धांत, नीति व कार्यप्रणाली से जबरदस्त तौर पर सेक्युलर पार्टी है। घोर सांप्रदायिक व जातिवादी सोच वाली भाजपा को कमजोर करने के लिए बसपा हमेशा सेक्युलर पार्टियों की एकता की समर्थक रही है। गठजोड़ के प्रति अविश्वास पैदा न हो और इसका पूरा लाभ भाजपा को न मिले इसलिए रैली में नहीं जाने का फैसला किया है। राजद नेतृत्व को बता दिया गया है कि बसपा सीटों के बंटवारे की नीति व सिद्धांत तय होने के बाद किसी गठबंधन में शामिल होगी। उन्होंने कहा कि बसपा अपने आत्म-सम्मान व स्वाभिमान के आंदोलन के साथ और सीटों के सम्मानजनक बंटवारे के मामले में कभी भी कोई समझौता नहीं करेगी। सुप्रीम कोर्ट की नौ-जजों की संविधान पीठ के निजता को मौलिक अधिकार देने संबंधी फैसले का स्वागत किया है। यह फैसला वास्तव में ऐतिहासिक है व लोकतंत्र व संविधान को मजबूती देने वाला है। यह फैसला मोदी सरकार के लिए कड़ी चेतावनी भी है।