ताज़ा खबरें

पटना: बिहार के मुजफ्फरपुर में 117 बच्चों की मौत होने के बाद केंद्र और राज्य सरकार की नींद तो खुली, लेकिन अब भी प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से केवल इस साल नहीं, बल्कि पहले भी मौतें हुई हैं। दरअसल, मासूमों की मौत का गवाह बन रहा मुजफ्फरपुर जिला स्वास्थ्य सुविधाओं और आधारभूत संरचनाओं के मामले में फिसड्डी रहा है। आधिकारिक आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं। विज्ञापन स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) पर स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं जिले के सभी 103 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और एकमात्र सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खस्ताहाल हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय की नजर में एक भी पीएचसी फिट नहीं हैं और सभी रेटिंग के मामले में शून्य हैं। मालूम हो कि ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे एईएस का शिकार हो रहे हैं। 103 में से 98 पीएचसी मूल्यांकन के भी काबिल नहीं मुजफ्फरपुर जिले के 103 में से 98 पीएचसी, स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली के मूल्यांकन के लायक भी नहीं हैं।

इस मूल्यांकन के लिए जो न्यूनतम आधारभूत सुविधाएं होनी चाहिए, इन 98 पीएचसी में वे हैं ही नहीं। ऐसे में साल 2018-19 के लिए ये सारे पीएचसी, मूल्यांकन के दायरे में नहीं आ सके। बाकी पांच पीएचसी, जहां का मूल्यांकन किया जा सका, हरेक की रेटिंग शून्य रही। रेटिंग में बुनियादी ढांचे के लिए तीन और सेवाओं के लिए दो अंक होते हैं। इन पांच पीएचसी में से प्रत्येक, दोनों तरह की रेटिंग में पूरी तरह फेल साबित हुआ।

मूल्यांकन के लिए कम से कम ये सुविधाएं जरुरी

पीएचसी की आधारभूत संरचना सुदृढ़ होनी चाहिए।

24 X 7 पीएचसी के लिए

कम से कम एक चिकित्सा पदाधिकारी होने चाहिए।

कम से कम दो नर्स/दाई होनी चाहिए।

एक लेबर रूम जरुर होना चाहिए।

गैर 24 X 7 पीएचसी के लिए

कम से कम एक चिकित्सा पदाधिकारी होने चाहिए।

और कम से कम एक नर्स होनी चाहिए।

 

 

 

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख