मुजफ्फरपुर: ‘अज्ञात बुखार’ के कारण पिछले करीब 20 दिनों में बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के कुछ जिलों के लगभग 120 बच्चों की मौत के बाद लोगों की नाराजगी बढ़ती जा रही है। नाराजगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रविवार को यहां के सरकारी एसकेएमसीएच अस्पताल आए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को काले झंडे दिखाये गये। लोगों के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए पुलिस भी सतर्क है और अस्पताल के आस-पास सुरक्षा बढ़ा दी गयी है।
श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (एसकेएमसीएच) के अधीक्षक डॉ सुनील कुमार शाही ने मीडिया को बताया कि एसकेएमसीएच में ‘एईएस’ से पिछले करीब तीन सप्ताह में 85 बच्चों की जान चली गई और यह सिलसिला रुक नहीं रहा है। सोमवार को सुबह इससे प्रभावित 19 बच्चों को भर्ती कराया गया है। उन्होंने बताया कि सोमवार को भी तीन बच्चों की मौत हो चुकी है। एम्स पटना से उपचार में मदद के लिए कुछ डॉक्टर आए हैं। छह स्पेशलिस्ट नर्सों को वेंटिलेटर सुविधा के लिए लगाया गया है।
उन्होंने कहा कि यहां 1993 में सबसे पहले इस बीमारी का मामला सामने आया लेकिन इसका कारण अब तक पता नहीं चल सका है।
केजरीवाल अस्पताल के अधिकारियों ने बताया कि वहां भी पिछले दिनों में 20 से अधिक बच्चों की मौत हुई और कई बच्चों को उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई। अधिकारियों ने बताया कि पटना स्थित पीएमसीएच अस्पताल में भी पांच बच्चों की मौत का मामला सामने आया है। पूर्वी चंपारण एवं वैशाली में भी करीब पांच बच्चों की मौत हुई है।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 में इस बीमारी के कारण 86 बच्चों की मौत हुई थी जबकि 2015 में 11, साल 2016 में 4, साल 2017 में 4 और साल 2018 में 11 बच्चों की मौत हुई थी। एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल में एईएस पीड़ित कई बच्चे हैं।
एसकेएमसीएच में भर्ती मीनापुर की चार वर्षीय उजली खातून की मां कहती है कि बच्ची को बुखार एवं ऐंठन के लक्षण दिखने पर पहले तो आसपास के कई अस्पतालों में उसे ले जाया गया। कुछ अस्पतालों में डॉक्टर नहीं थे। एक अस्पताल में डॉक्टर थे। उन्होंने कुछ दवाएं दीं और बच्ची को तुरंत मुजफ्फरपुर के सरकारी अस्पताल एसकेएमसीएच ले जाने को कहा। हर साल मई-जून में कहर बरपाने वाली इस बीमारी ने पिछले करीब 25 बरस से मुजफ्फरपुर एवं आसपास के क्षेत्र को अपनी चपेट में लिया है। इसका कोई स्थायी निदान नहीं निकाला जा सका है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा पूरी तरह से जर्जर है, गांव में स्वास्थ्य केंद्रों का अभाव है और जहां केंद्र है, वहां डॉक्टर नहीं है। अज्ञात बुखार के बारे में जांच, पहचान एवं स्थायी उपचार के लिये स्थानीय स्तर पर एक प्रयोगशाला स्थापित करने की मांग लंबे समय से मांग ही बनी हुई है। मुजफ्फरपुर में अस्पताल की स्थिति ऐसी है कि एक बेड पर तीन बच्चों का इलाज किया जा रहा है। हालांकि, आज 16 अतिरिक्त बेड लगाए गए।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन के साथ रविवार को जब स्वास्थ्य कर्मियों का दल मेडिकल कालेज अस्पताल में निरीक्षण कर रहा था, उस समय भी दो बच्चों की मौत हुई। डॉ हर्षवर्धन ने कहा था कि सौ बच्चों की मौत बेहद चिंताजनक है और सरकार इस बारे में गंभीरता से काम कर रही है। केंद्र सरकार ने राज्य में संसाधनों को बेहतर बनाने के लिए मदद का आश्वासन दिया और प्रदेश सरकार से प्रस्ताव भेजने को कहा है।
मुजफ्फरपुर एवं आसपास के क्षेत्रों से मच्छर एवं मक्खी के नमूने लेने को भी कहा गया है जिसका अध्ययन भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद में होगा।
बिहार के स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, इस साल अधिकतर मौतें हाइपोग्लाइसीमिया की वजह से हुईं। हालांकि सरकारी अधिकारी यह कहने से भी बचते रहे कि हाइपोग्लाइसीमिया एईएस की दर्जनभर बीमारियों में से एक है। चिकित्सक कुपोषण, साफ पानी की अनुपलब्धता, पर्याप्त पौष्टिक भोजन की कमी, साफ-सफाई तथा जागरूकता की कमी को इस बीमारी का उत्प्रेरक मानते हैं। इस बीमारी से बिहार के 12 जिले और 222 प्रखंड प्रभावित हैं। बच्चों की मौत के बढ़ते आंकड़ों ने अब सरकार के माथे पर शिकन ला दी है।