मुंबई: क्रेडिट कार्ड में गड़बड़ी होने के कारण समय पर फीस न भर पाने वाले दलित समुदाय के एक छात्र को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी। सुप्रीम कोर्ट ने आज बॉम्बे आईआईटी को आदेश दिए कि वह अगले 48 घंटे में इस छात्र को दाखिला दे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि दलित छात्र की सीट के लिए किसी दूसरे छात्र की सीट ना ली जाए, बल्कि उसके लिए अलग से सीट बनाई जाए। गौरतलब है कि क्रेडिट कार्ड के काम नहीं करने के कारण यह छात्र फीस नहीं जमा कर सका जिसके चलते उसे आईआईटी बॉम्बे में दाखिला नहीं मिला था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत को कभी-कभी कानून से ऊपर उठना चाहिए क्योंकि कौन जानता है कि आगे चलकर 10 साल बाद वह हमारे देश का नेता हो सकता है।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश वकील को निर्देश दिया था कि वह आईआईटी बंबई में दाखिले का ब्योरा हासिल करें और इस संभावना का पता लगाएं कि उस छात्र को कैसे प्रवेश मिल सकता है।
कोर्ट ने कहा वह एक दलित स्टूडेंट है, जो बिना अपनी किसी गलती के दाखिले से चूक गया। उसने आईआईटी की एक परीक्षा पास की है और आईआईटी बॉम्बे में दाखिला लेने वाला था। ऐसे कितने बच्चे ऐसा करने में सक्षम हैं? अदालत को कभी-कभी कानून से ऊपर उठना चाहिए। कौन जानता है कि 10 साल बाद वह हमारे देश का नेता हो।
पीठ ने आईआईटी बॉम्बे और संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण की ओर से पेश वकील सोनल जैन से कहा था कि उन्हें 22 नवंबर तक छात्र को समायोजित करने की संभावना तलाशनी चाहिए और आईआईटी, बंबई में सीट की स्थिति के बारे में निर्देश लेना चाहिए। पीठ ने कहा था कि लेकिन यह एक मानवीय मामला है और कभी-कभी हमें कानून से ऊपर उठना चाहिए। इसके साथ ही पीठ ने सरकार के वकील को निर्देश लेने के लिए कहा तथा आश्वासन दिया कि उसके आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा।
प्रवेश परीक्षा में आरक्षित श्रेणी में 864वां रैंक हासिल करने वाले याचिकाकर्ता प्रिंस जयबीर सिंह की ओर से पेश अमोल चितले ने कहा था कि अगर उन्हें आईआईटी बॉम्बे में प्रवेश नहीं मिलता है, तो वह किसी अन्य आईआईटी संस्थान में भी दाखिला लेने को तैयार हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि युवा दलित छात्र एक मूल्यवान सीट खोने के कगार पर है जो उसे आईआईटी बॉम्बे में आवंटित की गई है। अपीलकर्ता के कष्टों ने उसे इलाहाबाद से खड़गपुर फिर बॉम्बे और फिर राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंचाया है। यह न्याय का घोर उपहास होगा कि एक युवा दलित छात्र को फीस का भुगतान न करने पर प्रवेश से वंचित कर दिया जाए। इसलिए हम इस विचार से हैं कि ये अंतरिम चरण में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत फिट केस है।