शिमला: हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों के लिए सुबह आठ बजे से 48 मतगणना केंद्रों पर शुरू हुई मतगणना के रुझान भाजपा के पक्ष में रहे। अब तक के रुझानों में भाजपा नेे 40 सीटों के साथ बहुमत हासिल कर लिया। इन रुझानों में कांग्रेस 22 सीटों पर आगे है। वहीं, 4 सीटों पर अन्य आगे हैं। पहाड़ी राज्य में शुरुआती रुझानों से ही मुकाबला कड़ा देखा गया।
पहले यहां भाजपा ने अचानक बढ़त बनाते हुए कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया था, लेकिन देर होते-होते मुकाबला कड़ा हो गया था, लेकिन बाद में भाजपा ने रुझानों में फिर बढ़त हासिल कर ली। सुजानपुर सीट से भाजपा के सीएम पद के उम्मीदवार और प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे प्रेम कुमार धूमल आगे चल रहे हैं, जबकि अर्की सीट से वीरभद्र सिंह आगे चल रहे हैं।
उधर, शिमला ग्रामीण सीट से कांग्रेस की तरफ से मैदान में खड़े वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह आगे चल रहे हैं। सत्तारुढ़ कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), दोनों ने इस पहाड़ी राज्य में अपनी सरकार बनने को लेकर भरोसा जताया था। जहां एक्जिट पोल (मत सर्वेक्षण) में भाजपा के बहुमत से सत्ता में आने के संकेत दिए गए थे, वहीं राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा था कि कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है, क्योंकि चुनाव के समय 'किसी भी पार्टी के पक्ष में स्पष्ट लहर नहीं दिखी।
दिलचस्प बात यह है कि यह राज्य वर्ष 1985 से वैकिल्पक रूप से कभी कांग्रेस तो कभी भारतीय जनता पार्टी को चुनता आया है। वर्ष 2012 में कांग्रेस ने 36 सीटें जीतीं थीं, जबकि भाजपा को 26 सीटों से संतोष करना पड़ा, वहीं छह सीटें निर्दलीय नेताओं के हाथ लगी थीं। साल 2012 के चुनाव में हार का सामने करने के बाद भाजपा राज्य में वापसी करने की पुरजोर कोशिश कर रही थी।
पार्टी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई रैलियां की थी। वहीं, कांग्रेस को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में 2012 की जीत दोहराने की उम्मीद थी। वीरभद्र सिंह ने रविवार को एक्जिट पोल को खारिज करते हुए कहा था, "फिर से मेरी सरकार बनने जा रही है"।
उन्होंने शिमला में संवाददाताओं से कहा, "एक्जिट पोल के साथ हेर-फेर होता है, ये वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित नहीं होते। चूंकि, मैंने राज्यभर में चुनाव प्रचार किया है, मैं लोगों की नस से वाकिफ हूं और उनके मूड को अच्छी तरह से समझता हूं"। वहीं, दूसरी ओर भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार प्रेम कुमार धूमल ने कहा था, "लोगों ने बदलाव के लिए मतदान किया है और हम रिकॉर्ड जीत से सरकार गठित करने जा रहे हैं"।
धूमल वर्ष 2012 के चुनाव तक मुख्यमंत्री थे। उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद हुए इस चुनाव में धूमल धूमिल पड़ गए और सत्ता कांग्रेस को हाथ लगी, जबकि अन्ना का आंदोलन कांग्रेस के खिलाफ था। दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके धूमल ने कहा था "हमने 50 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। एक्जिट पोल हमारे लिए हैरान करने वाले नहीं हैं"।
उल्लेखनीय है कि नौ नवंबर को हुए मतदान में 50,25,941 मतदान करने योग्य लोगों में से कुल 37,83,580 लोगों ने मतदान किया था। कुल 75.28 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस चुनाव में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने अपने 14 उम्मीदवार उतारे, जबकि कई निर्दलीय भी चुनाव मैदान में उतरे। इस चुनाव में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार दोनों वरिष्ठ चेहरों के लिए 'करो या मरो' की स्थिति रही। वीरभद्र ने (80) और धूमल (73) दोनों ने जनता को रिझाने के लिए अपनी तरफ से कड़ी मेहनत की थी।
इस बार वीरभद्र दो मोर्चों पर लड़ रहे थे। एक तरफ जहां वह अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह को राजनीति में स्थापित करना चाहते थे, वहीं दूसरी ओर उन्हें अपनी जीत को दोहराना था, क्योंकि सभी बाधाओं के बावजूद उन्होने पार्टी को उन्हें (वीरभद्र) मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने के लिए मजबूर किया। वीरभद्र और धूमल दोनों ही नई सीटों से फिर चुने जाने की आस में हैं।