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नई दिल्ली: बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में संलिप्त 16 साल और उससे अधिक आयु के किशोरों पर वयस्कों की भांति मुकदमा चलाने संबंधी हाल ही में पारित किशोर न्याय कानून (जुवेनाइल जस्टिस एक्ट) के नए प्रावधान की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। संसद ने शीतकालीन सत्र में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून, 2015 पारित किया था। इस संशोधन की संवैधानकिता को कांग्रेस के नेता तहसीन पूनावाला ने चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि नया कानून अनुचित, मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 में प्रदत्त समता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला है। याचिका में नए कानून की धारा 15 को चुनौती दी गई है।

इस धारा में प्रावधान है कि यदि 16 साल या उससे अधिक आयु के किशोर ने कथित रूप से कोई जघन्य अपराध किया है तो किशोर बोर्ड प्रारंभिक जांच करके यह निर्धारित करेगा कि क्या किशोर अपराधी को पुनर्वास के लिए भेजा जाए या फिर उस पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाए। याचिका में कहा गया है कि संशोधित कानून असंवैधानिक है, जिसमें बच्चों की देखभाल और उनका संरक्षण करने के बजाय उसे कथित रूप से गंभीर अपराध करने के मामले में वयस्क माना जाय। याचिका में यह भी कहा गया है कि यह संशोधन बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कंवेन्शन की भावना और बच्चों व किशोर अपराधियों को प्राप्त संरक्षण के खिलाफ है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चार जनवरी को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून को अपनी संस्तुति दी थी। यह कानून इस बात की भी अनुमति देता है कि यदि कोई किशोर 16 से 18 साल की उम्र में कम संगीन अपराध करता है, लेकिन उसे 21 साल की आयु के बाद गिरफ्तार किया जाता है तो उस पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जा सकता है।

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