नई दिल्ली: केंद्र ने अरूणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने को उच्चतम न्यायालय में यह कहते हुए उचित ठहराया कि राज्य में शासन और कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी। वहां प्रदेश के राज्यपाल और उनके परिवार की जान को गंभीर खतरा था। गृह मंत्रालय द्वारा दायर हलफनामे में आरोप लगाया गया है कि मुख्यमंत्री नबाम तुकी और विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा के खिलाफ ‘‘सांप्रदायिक राजनीति’’ कर रहे हैं। राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करते हुए उन घटनाक्रमों का ब्योरा दिया था जिसके बाद राज्य की कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई थी। इसमें कहा गया है, ‘‘मुख्यमंत्री नबाम तुकी और विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया दोनों एक ही समुदाय के हैं।
वे एक खास समुदाय के छात्रों और अन्य सांप्रदायिक संगठनों को अन्य आदिवासियों और राज्यपाल के असमी मूल का उल्लेख करके उन्हें भड़काकर और उनका वित्तपोषण करके सांप्रदायिक राजनीति कर रहे हैं।’’ केंद्र ने हलफनामे में कहा, ‘‘यहां तक कि राजभवन परिसर को भी नबाम तुकी और नबाम रेबिया के समर्थकों ने कई घंटे तक घेर रखा था क्योंकि जिला प्रशासन और पुलिस ने निषेधाज्ञा लागू नहीं की थी और एक भी गिरफ्तारी नहीं की गई।’’ संवैधानिक विफलता के संकेतकों का ब्योरा देते हुए हलफनामे में कहा गया है कि राज्य प्रशासन के संबंध में सार्वजनिक महत्व के मामलों पर राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्रों, संदभरें का मुख्यमंत्री ने ज्यादातर मामलों में संविधान के अनुच्छेद 167 (बी) का उल्लंघन करते हुए जवाब नहीं दिया। हलफनामा अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दायर किया था। उनसे न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्रीय शासन लगाए जाने को चुनौती देने वाली याचिका का जवाब देने को कहा था। उन्होंने कहा, ‘‘राज्य में कोई प्रभावकारी प्रशासन नहीं है और राज्य में सरकार संविधान के अनुसार काम नहीं कर रही है।’’ हलफनामे में कहा गया है, ‘‘राज्यपाल राष्ट्रपति द्वारा नामित हैं और उन्हें मौजूदा सरकार के समर्थक सार्वजनिक तौर पर अपमानित कर रहे हैं और यहां तक कि उनका घेराव भी किया लेकिन राज्य प्रशासन मूकदर्शक बना रहा।’’ हलफनामे में कहा गया है, ‘‘राजनैतिक कार्यपालक के इशारे पर राज्यपाल का घेराव राज्य में संवैधानिक तंत्र का चरमराना है।’’