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नई दिल्ली: संसद ने सोमवार को बहुप्रतीक्षित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से जुड़े संबंधित संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर देश में नयी परोक्ष कर प्रणाली के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया। सरकार ने इसे कर आतंकवाद खत्म से मुक्ति की दिशा में महत्वपूर्ण पहल बताया तथा जीएसटी के तहत कर दर को यथासंभव नीचे रखने की बात कही। लोकसभा ने आज संविधान (122वां संशोधन) विधेयक पर सरकार द्वारा लाए गये संशोधनों को शून्य के मुकाबले 443 मतों से मंजूरी दे दी। अन्नाद्रमुक ने सदन से वाकआउट किया। राज्यसभा इस संविधान संशोधन विधेयक को पहले ही पारित कर चुकी है। वैसे यह विधेयक पहले ही लोकसभा में पारित हो चुका था किन्तु उच्च सदन में सरकार द्वारा लाये गये संशोधनों के कारण इसे फिर से निचले सदन की मंजूरी दिलवानी पड़ी। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर हुई चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इससे देश में ‘कर आतंकवाद से मुक्ति’ मिलेगी। उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था में गरीबों के उपयोग की अधिकतर वस्तुओं को कर से अलग रखा गया है और इससे भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम लगाने का मार्ग प्रशस्त होगा। उन्होंने कहा, ‘जीएसटी को किसी एक पार्टी या सरकार की विजय के रूप में नहीं बल्कि भारत की स्वस्थ लोकतांत्रिक परम्परा एवं सभी राजनीतिक दलों की जीत के रूप में देखा जाना चाहिए। यह सभी पूर्व की सरकारों और वर्तमान सरकार के प्रयासों का नतीजा है।’

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संविधान (122वां संशोधन) विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि यह मार्गदर्शक सिद्धान्त होगा कि जीएसटी दर को यथासंभव नीचे रखा जाए। निश्चित तौर पर यह आज की दर से नीचे होगा। वित्त मंत्री ने कहा कि इस संशोधित विधेयक के जरिये एक समान वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली के लागू होने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। इसके माध्यम से केन्द्रीय उत्पाद कर तथा राज्य वैट : बिक्री कर सहित सभी परोक्ष कर इसी में शामिल हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि संशोधित प्रावधानों के अनुसार जीएसटी परिषद को केन्द्र एवं राज्यों अथवा दो या अधिक राज्यों के बीच आपस में होने वाले विवाद के निस्तारण के लिए एक प्रणाली स्थापित करनी होगी। जीएसटी दर की सीमा तय करने के मुद्दे पर जेटली ने कहा कि इसका निर्णय जीएसटी परिषद करेगी जिसमें केन्द्र एवं राज्यों का प्रतिनिधित्व होगा। इसमें सभी राज्यों के वित्त मंत्री शामिल होंगे। जेटली ने कहा कि अन्नाद्रमुक ने जीएसटी परिषद में केंद्र और राज्यों की भागीदारी एक चौथाई और तीन चौथाई अनुपात में करने की मांग की है। इस तरह से तो केंद्र सरकार कर प्रणाली से एक तरह से बाहर हो जायेगी। उन्होंने कहा कि भारत राज्यों का संघ है। इसलिए मजबूत संघ, मजबूत राज्यों की जरूरत है। कमजोर संघ नहीं हो सकता। वित्त मंत्री ने कहा कि संविधान संशोधन विधेयक में प्रावधान है कि किसी राज्य में बाढ़ जैसी आपदा की स्थिति में राज्य के संदर्भ में जीएसटी परिषद फैसला कर सकती है। उन्होंने कहा कि विधेयक का मसौदा जीएसटी परिषद बनाएगी। जिसमें राज्यों के वित्त मंत्री भी होंगे। वह मसौदा केंद्र के पास आएगा और राज्यों के समक्ष आएगा। केंद्रीय जीएसटी का मसौदा, एकीकृत जीएसटी का मसौदा संसद में और राज्यों की जीएसटी का मसौदा विधानसभाओं में आएगा। धन विधेयक को लेकर आशंकाओं के बीच जेटली ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत संविधान में धन विधेयक को लेकर स्पष्ट प्रावधान है। उस परिभाषा के दायरे में आएगा तो धन विधेयक होगा। विधेयक के रोडमैप के संदर्भ में उन्होंने कहा कि संसद से पारित होने के बाद यह राज्यों में जाएगा। राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किये जाने के बाद जीएसटी परिषद बनेगी और यह परिषद विधेयक का मसौदा तैयार करेगी। जेटली ने कहा कि जितना जल्दी हम समन्वय के साथ विधेयकों को पारित कर पाएंगे, उतनी जल्दी यह लागू होगा। जेटली ने इसे ऐतिहासिक कर सुधार बताते हुए कहा कि आज अधिकतर राज्य सरकारें और विभिन्न राजनीतिक दल इसका समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जीएसटी का मकसद भारत को एक बाजार के रूप में समन्वित करना और कराधान में एकरूपता लाना है। वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी परिषद के फैसलों में दो तिहाई मत राज्यों का और एक तिहाई मत केंद्र का होगा। जीएसटी से केंद्र और राज्यों का राजस्व बढ़ेगा, साथ ही करवंचना कम होगी। कांग्रेस द्वारा जीएसटी पर पूरा सहयोग देने और 18 प्रतिशत कर सीमा तय करने के विषयों को जोड़ने की पहल करने के कांग्रेस नेता मल्लिकाजरुन खडगे के बयान पर जेटली ने कहा कि 2011 में जब प्रणब मुखर्जी ने विधेयक को पेश किया था तब इसमें न तो सीमा की बात थी और न ही अन्य कोई उल्लेख था। जब यह 2015 में राज्यसभा में गया तब कांग्रेस ने सीमा (कैप) का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि राज्यों का सीएसटी का बकाया था जिन्हें हम किस्तों में अदा कर रहे हैं और दो तिहाई का भुगतान कर चुके हैं।

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