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नई दिल्ली: भारत प्रसिद्ध कोहिनूर हीरे को वापस लाने के लिए सभी प्रयास करेगा। वर्तमान में शाही मुकुट में जड़ा 106 कैरेट का यह हीरा ‘टावर ऑफ लंदन’ में प्रदर्शन के लिए रखा गया है। और ब्रिटिश सरकार ने हालिया बयान में यह कह कर इसे देने से इनकार किया है कि इसका कोई कानूनी आधार नहीं है। ब्रिटिश बलों द्वारा 1849 में पंजाब को अपने अधीन करने और सिख साम्राज्य की संपत्तियों को जब्त करने के बाद करीब 20 करोड़ डॉलर की कीमत वाले इस कोहिनूर हीरे को भी लाहौर में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खजाने को हस्तांतरित कर दिया गया था। एक वरिष्ठ सरकारी सूत्र ने बताया, ‘सरकार इस हीरे को वापस लाने के लिए कूटनीतिक और काूननी दोनों तरीके से विचार कर रही है। अगर भारत कूटनीतिक प्रयासों के जरिए हीरा वापस लाने में सक्षम रहता है तो उसे कानूनी तरीका आजमाने की जरूरत नहीं होगी। लेकिन, अगर यह फलदायी साबित नहीं होता तो सरकार कानूनी विकल्प पर भी गौर करेगी।’ भारत की यह प्रतिक्रिया पिछले सप्ताह यहां दौरे पर आए ब्रिटेन के एशिया एवं प्रशांत मामलों के मंत्री आलोक शर्मा के उस बयान की पृष्ठभूमि में आई है, जिसमें उन्होंने यह संकेत दिया था कि कोहिनूर शायद कभी भी भारत का नहीं हो सकता। उन्होंने कहा था, ‘जहां तक इस मुद्दे का संदर्भ है तो इसे वापस लौटाने का कोई कानूनी आधार नहीं बनता।’ इसी की पृष्ठभूमि में भारत का यह कदम सामने आया है। सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) भी इस अनमोल रत्न पर दावा पेश करते हुए मैदान में कूद पड़ी है।

पंजाब कैबिनेट के मंत्री दलजीत सिंह चीमा ने कहा है कि इस हीरे पर राज्य का वैधानिक अधिकार है और दावा किया कि ब्रिटिश इसे पंजाब के अंतिम सिख शासक महाराजा दलीप सिंह से छल से ले गए थे। हीरे को वापस लाने का मुद्दा एक भावनात्मक मुद्दा भी रहा है और इसे वापस लाने के लिए सरकार पर राजनीतिक दबाव बढ़ने के बाद संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने हाल में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ बैठक की। प्राप्त सूचना के अनुसार, इस बैठक में यह फैसला किया गया कि इसे वापस लाने के मुद्दे पर अगले महीने ब्रिटेन से संपर्क किया जाएगा। उच्चतम न्यायालय कोहिनूर वापस लाने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है।

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