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नई दिल्ली: चीनी सेना ने उत्तराखंड के बाराहोटी इलाके में घुसपैठ से पहले सिंथेटिक ऐपर्चर रेडार (एसएआर) से लैस उच्च श्रेणी के विमान का इस्तेमाल कर एक टोही मिशन चलाया था। एसएआर व्यापक क्षेत्र की उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीर उपलब्ध कराता है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के ‘तुपोलोवतु 153एम’ विमान ने उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के अंतर्गत आने वाले मध्य क्षेत्र में इस साल के शुरू में दो से तीन उड़ानें भरी थीं। बाराहोटी में घुसपैठ के बाद विभिन्न स्रोतों से मिली खुफिया जानकारी को एक साथ रखते हुए जानकार अधिकारियों ने कहा कि पिछले तीन महीनों में विमान ने कम से कम तीन उड़ानें भरी थीं। इस विमान का निर्माण पूर्व सोवियत संघ की प्रौद्योगिकी के आधार पर चीनी कंपनियों द्वारा किया जाता है। विमान 40 हजार फुट की उंचाई पर उड़ता है और रेडार की नजरों से बचने के लिए यह 60 हजार फुट की उंचाई तक जा सकता है और उस उंचाई से तस्वीरें ले सकता है तथा अन्य साइबर और संचार जानकारी जुटा सकता है। इसमें एक एसएआर लगा होता है जो खराब मौसम या रात में भी अच्छी गुणवत्ता वाली तस्वीरें उपलब्ध करा सकता है। प्रणालियों को रेडार संकेतों के लंबी दूरी के फैलाव और उच्च गुणवत्ता की तस्वीरें उपलब्ध कराने के लिए आधुनिक डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स की जटिल सूचना संसाधन क्षमता का लाभ मिलता है। सूत्रों ने बताया कि उड़ान के बारे में सूचना विदेशी खुफिया एजेंसियों के बारे में साझा की गई थी।

उत्तराखंड में चमोली जिले के बाराहोटी क्षेत्र के विसैन्यीकृत इलाके में इस महीने के शुरू में कम से कम 20 से 25 सैनिकों ने प्रवेश किया था। इसके अलावा चीनी हेलीकॉप्टर भी भारतीय नभक्षेत्र में पांच मिनट से अधिक समय तक उड़ते रहे थे। सूत्रों ने बताया कि चीनी सैनिकों ने भारतीय असैन्य टीम को वापस भेज दिया था और दावा किया था कि यह उनकी भूमि है तथा वे इलाके को ‘वु-जे’ इलाका बता रहे थे। चीन का एक हेलीकॉप्टर वापस अपनी सीमा में लौटने से पहले लगभग पांच मिनट तक मैदान के उपर मंडराता रहा था। यह आशंका जताई गई थी कि इसने टोही मिशन के दौरान क्षेत्र की हवाई फोटोग्राफी की। हेलीकॉप्टर की पहचान पीएलए के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों की झिबा सीरीज के हेलीकॉप्टर के रूप में हुई थी। बाराहोटी उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड पर आधारित ‘मिडिल सेक्टर’ में पड़ने वाली उन तीन सीमा चौकियों में से एक है, जहां आईटीबीपी के जवानों को उनके हथियार ले जाने की अनुमति नहीं है। ऐसा जून 2000 में तत्कालीन सरकार के एकपक्षीय फैसले के कारण है। वर्ष 1958 में, दोनों देशों ने 80 वर्ग किलोमीटर के ढलान वाले चारागाह बाराहोटी को एक विवादित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया था, जहां कोई भी पक्ष अपने सैनिक नहीं भेजेगा। वर्ष 1962 के युद्ध में, चीन की पीएलए 545 किलोमीटर के मिडिल सेक्टर में नहीं घुसी थी और उसने अपना ध्यान पश्चिमी :लद्दाख: और पूर्वी :अरूणाचल प्रदेश: सेक्टरों पर केंद्रित रखा था। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद आईटीबीपी के जवान गैर-लड़ाकू तरीके से हथियारों के साथ इस इलाके की गश्त किया करते थे। इस तरीके के तहत बंदूक की नली जमीन की ओर होती है। सीमा विवाद को हल करने के लिए लंबी वार्ताओं के दौरान भारतीय पक्ष जून 2000 में एकपक्षीय तौर पर इस बात पर सहमत हो गया था कि आईटीबीपी के जवान तीन चौकियों- बाराहोटी, कौरिल और हिमाचल प्रदेश के शिपकी में हथियारों से लैस नहीं होंगे। आईटीबीपी के जवान सादी वर्दी में गश्त करते हैं और यहां चारागाह में भारत के सीमावर्ती गांवों से गडरिए अपनी भेड़ों को और तिब्बत से लोग अपनी याक को चराने के लिए लाते हैं।

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