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नई दिल्ली: पिछले दिनों चीन के सैनिकों ने उत्तराखंड क्षेत्र के चमोली जिले में भारत की सीमा में घुसपैठ की । हथियारों से लैस इन सैनिकों को इलाके में डेरा डाले देखा गया जबकि दोनों देशों के बीच इस क्षेत्र को विसैन्यीकृत रखने पर सहमति है । आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि यह घटना 19 जुलाई को उस वक्त हुई जब भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के अधिकारियों सहित कुछ अन्य की टीम चमोली के जिलाधिकारी की अगुवाई में बाराहोती मैदान का निरीक्षण करने गई थी । सूत्रों ने बताया कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों ने चमोली के जिलाधिकारी की अगुवाई में गई टीम को यह कहते हुए वापस भेज दिया कि यह उनका इलाका है । करीब 80 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला बराहोती मैदान 1957 से ही दोनों देशों द्वारा एक विवादित भाग माना जाता रहा है । इस विवाद को दोनों पक्षों द्वारा वार्ता के जरिए सुलझाए जाने पर सहमति बनी थी। सूत्रों ने कहा कि पिछले कुछ सालों से चीनी सैनिकों को इस इलाके में देखा जाता रहा है और कई बार उन्होंने वायु सीमा का भी उल्लंघन किया है । चीनी पक्ष ने अपने भारतीय समकक्षों के साथ वार्ता के लिए 19 अप्रैल 1958 को एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था । दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए थे कि वे इस इलाके में अपने सैनिक नहीं भेजेंगे, लेकिन उन्होंने बराहोती मैदान के मसले को हमेशा के लिए निपटाने पर चर्चा से परहेज किया था । सूत्रों ने बताया कि इस समझौते के बाद से आईटीबीपी इस इलाके में हथियारों के साथ कभी दाखिल नहीं हुई ।

गौरतलब है कि आईटीबीपी जम्मू-कश्मीर में लद्दाख से लेकर पूर्वोत्तर में अरूणाचल प्रदेश तक फैली 3,488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा की हिफाजत करती है । बहरहाल, दोनों देशों के गड़रियों को मैदान में आने-जाने की इजाजत होती है । चीनी सैनिक इलाके से फिलहाल वापस चले गए हैं । हालांकि, इस बात की आशंका जताई जा रही है कि वे इलाके में अपने सैनिकों को भेजकर 1958 के समझौते का गलत फायदा उठा सकते हैं । चीन इस इलाके को ‘‘वू-चे’’ कहता है । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस घटना को ‘‘चिंता का विषय’’ करार देते हुए उम्मीद जताई है कि केंद्र सरकार सीमा पर निगरानी बढ़ाने के उनके अनुरोध पर ध्यान देगी । दूसरी ओर, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि आईटीबीपी को मामला देखने के लिए कहा गया है ।

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