नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा के निलंबन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राघव चड्ढा को राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ से मिलकर बिना शर्त माफी मांगने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि सभापति सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और मामले को आगे बढ़ाएंगे। मामले की अगली सुनवाई 20 नवंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने आप सांसद की याचिका पर सुनवाई दिवाली की छुट्टियों के बाद निर्धारित की, अटॉर्नी जनरल से इस मामले में आगे के घटनाक्रम की जानकारी देने को कहा है।
मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि राघव चड्ढा कम उम्र के और पहली बार के सांसद हैं। वह बिना शर्त माफी मांग लेंगे. ऐसे में इस मुद्दे को खत्म कर देना चाहिए।"
राघव चड्ढा मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई तो चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "आपने बिना शर्त माफी की बात कही थी। बेहतर होगा कि आप सभापति से मिलें। उनकी सुविधा के मुताबिक, आप उनके घर, दफ्तर या सदन में माफी मांग लें, क्योंकि यह सदन और सभापति की गरिमा का मामला है।"
सभापति इस पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर सकते हैं: सीजेआई
इस पर राघव के वकील शादान फरासत ने कहा, "राघव राज्यसभा के सबसे युवा सदस्य हैं। उनको माफी मांगने में कोई हर्ज नहीं है। वो पहले भी क्षमा याचना कर चुके हैं।" शादान ने कहा कि राघव के निलंबन का प्रस्ताव पूरे सदन ने पारित किया था, लेकिन सभापति अपने स्तर पर भी इसे रद्द कर सकते हैं। सीजेआई ने कहा कि सभापति इस पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर सकते हैं।
क्या इससे विशेषाधिकार का उल्लंघन होता है?
राज्यसभा से निलंबित सांसद राघव चड्ढा की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। पिछली सुनवाई में सीजेआई ने अटॉर्नी जनरल से पूछा था कि इस तरह के अनिश्चितकालीन निलंबन का असर उन लोगों पर पड़ेगा, जिनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है। विशेषाधिकार समिति के पास सदस्य को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने की शक्ति कहां है? क्या इससे विशेषाधिकार का उल्लंघन होता है?
ये है पूरा मामला
राज्यसभा में 11 अगस्त को उच्च सदन के नेता पीयूष गोयल ने आप नेता राघव चड्ढा को निलंबित किए जाने का प्रस्ताव पेश किया था, जिसे सदन ने स्वीकार कर लिया था। चड्ढा पर दिल्ली राजधानी क्षेत्र (संशोधन) विधेयक, 2023 को सदन की प्रवर समिति में भेजने का प्रस्ताव करने के लिए, सदन के कुछ सदस्यों से सहमति लिए बिना ही प्रस्तावित समिति के लिए उनका नाम लेने का आरोप है।