नई दिल्ली: इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम मामले में 2 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में तीसरे दिन की सुनवाई हुई। इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक चंदे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जानकारी मांगी है। अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग सितंबर 2023 तक राजनीतिक पार्टियों को मिले चंदे का डेटा मुहैया कराए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग एसबीआई और राजनीतिक दलों से फंड का डेटा ले। शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से पूछा कि आदेश के बावजूद 2019 के बाद कोई डेटा क्यों नहीं दाखिल किया गया? सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
अदालत ने चुनाव आयोग से हर राजनीतिक दलों को 30 सितंबर 2023 तक मिले फंड का डेटा मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को याद दिलाया कि 2019 में एक आदेश पारित किया गया था, जिसके तहत चुनावी बांड के माध्यम से फंड लेने वाले सभी राजनीतिक दलों की डिटेल ईसीआई को देनी थी। सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (ईसीआई) से पूछा कि आदेश के बावजूद 2019 के बाद कोई डेटा पेश क्यों नहीं किया गया?
ईसीआई पार्टियों या एसबीआई से मांगे डेटा: सुप्रीम कोर्ट
अदालत ने कहा कि हम 2023 तक चुनावी बांड के जरिए विभिन्न दलों को मिले डोनेशन के डेटा पर एक नज़र डालना चाहते हैं। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि आपके पास आज तक 2023 तक का डेटा होना चाहिए था। सीजेआई ने चुनाव आयोग को जरूरत पड़ने पर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और राजनीतिक दलों से डेटा इकट्ठा करने के लिए कहा।
सीजेआई ने निर्वाचन आयोग से पूछा कि हालांकि आप स्टेट बैंक नहीं हैं, लेकिन आपके पास उपलब्ध जानकारी के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए कितने रुपए आए? इसकी डिटेल होनी चाहिए।
अदालत में क्या हुई बहस?
चुनाव आयोग के वकील अमित शर्मा ने कहा कि सारी जानकारी सीलबंद लिफाफे में है। हमने भी वो लिफाफा नहीं खोला है। आप ही उसे खोल सकते हैं। हम नहीं। हमने मंत्रालय को दो चिट्ठियां लिखी हैं। सॉलिसिटर जनरल ने भी कहा कि आरबीआई और ईसीआई के बीच बैठकें हुई हैं। उनमें सर्व सम्मत निर्णय लिए गए।
इस पर जस्टिस खन्ना ने पूछा कि कितने बॉन्ड्स आए? इसकी जानकारी तो आपको होगी? इस पर अमित शर्मा ने हामी भरी। जस्टिस खन्ना ने पूछा कि मार्च 2023 तक का कोई आंकड़े आप हमें दे सकते हैं? अमित शर्मा ने कहा कि 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने ही एक आदेश पारित किया गया था, क्योंकि कोर्ट ने ही कहा था कि रिकॉर्ड रखने की जरूरत नहीं है। लिहाजा हमारे पास वो आंकड़ा नहीं है। क्योंकि आयोग उसे मेंटेन नहीं करता।
जस्टिस खन्ना ने कहा कि आप जब कोर्ट आ रहे थे, तो आपके पास आंकड़ा होना चाहिए था। हमने भी ऑर्डर देखा है। हमें लगा था कि आप डेटा के साथ आएंगे। क्या आपके पास मार्च 2023 तक का कोई डेटा है? इसपर अमित शर्मा ने कहा कि डेटा तो नहीं दिया जा सकता, लेकिन पार्टियों द्वारा जमा कराए गए इकोनॉमिक और टैक्स रिकॉर्ड दिखाए जा सकते हैं। ये रिकॉर्ड्स पार्टियां वित्तीय वर्ष की समाप्ति के छह महीने बाद आयोग के पास भेजती हैं। हमारे पास तो इलेक्टोरल बॉन्ड्स की कुल बिक्री का हिसाब है।
इसपर सीजेआई ने कहा कि आपके पास हर पार्टी को मिलने वाले बॉन्ड्स और चंदे का हिसाब होना चाहिए। हमें इसका डेटा दीजिए। अब तो वित्तीय वर्ष खत्म हुए छह महीने हो चुके हैं।
सरकार और निर्वाचन आयोग की दलीलों के बाद प्रशांत भूषण जब उनके जवाब पर प्रति उत्तर और आपत्ति दर्ज कराने लगे, तो सीजेआई ने कहा कि हम इस योजना की वैधानिकता का परीक्षण करने बैठे हैं। ये योजना भले कितनी भी नाकाम हो, लेकिन संवैधानिक रूप से सही प्रक्रिया से ही बनाई गई है।
कपिल सिब्बल ने भी रखी दलीलें
कपिल सिब्बल ने रिजॉइंडर में कहा कि कॉरपोरेट सत्तारूढ़ दल को बड़ा चंदा देते हैं। बाकी को मामूली। सरकार से वो फायदा उठाते हैं। पावर एंजॉय करते हैं। ये भी एक तरह का भ्रष्टाचार है। अगर भ्रष्टाचार खत्म करना है, तो उस स्कीम को फौरन बंद करना जरूरी है। वोट का अधिकार तो गुप्त है, लेकिन डोनर को जानकारी सबको होनी चाहिए। सत्तारूढ़ दल के साथ अन्य दलों को भी।
सिब्बल ने कहा, "आप उस जानकारी को पब्लिक डोमेन में न डालकर भ्रष्ट लेनदेन को संरक्षण दे रहे हैं। मैं एफआईआर दर्ज नहीं करा सकता, क्योंकि मुझ पर मानहानि का मुकदमा हो जाएगा। मैं अदालत नहीं जा सकता, क्योंकि मेरे पास कोई डेटा नहीं होगा, तो हम किस अदालती आदेश की बात कर रहे हैं?" सिब्बल ने कहा कि चुनावी बांड योजना को रद्द किया जाए।
मामले में 4 याचिकाएं दायर
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच कर रही है। इस मामले में चार याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सीपीएम का पिटीशंस भी हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड क्या होता है?
2017 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है, जिसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है। अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं, तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है।
क्या है पूरा मामला?
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।
इसके बाद दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था। सुनवाई के दौरान पूर्व सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि मामले की सुनवाई जनवरी 2020 में होगी। चुनाव आयोग की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए सुनवाई को फिर से स्थगित कर दिया गया। इसके बाद से अभी तक इस मामले को कोई सुनवाई नहीं हुई है।