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गुआंगचऊ: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंगलवार को कहा कि चीन के साथ भारत के संबंधों का मुख्य सिद्धांत समझौते वाले क्षेत्रों का विस्तार करना और मतभेदों को कम करना है। दक्षिणी चीन के औद्योगिक शहर गुआंगचउ से अपने चार दिवसीय चीन दौरे की शुरूआत करते हुए मुखर्जी ने कहा, ‘हम कभी भी मतभेदों को बढ़ाने में शामिल नहीं है, बल्कि हमने मतभेदों को कम किया है और समझौते वाले क्षेत्रों का विस्तार किया है।’ उन्होंने कहा, ‘यह भारतीय कूटनीति का मुख्य सिद्धांत है।’ राष्ट्रपति यहां चीन में भारत के राजदूत विजय गोखले की ओर से आयोजित स्वागत समारोह में भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित कर रहे थे। मुखर्जी ने यह स्मरण किया कि कुछ दशक पहले वाणिज्य मंत्री के तौर पर उन्होंने हैरानी जताई थी कि विश्व व्यापार संगठन चीन के बगैर कैसे काम कर सकता है। राष्ट्रपति ने कहा, ‘चीन के बगैर डब्ल्यूटीओ नहीं हो सकता। चीन की मौजूदगी जरूरी है। हम एक दूसरे के साथ निकट सहयोग के साथ काम करते हैं।’ मुखर्जी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग इस साल चीन में आयोजित होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन से इतर मुलाकात करेंगे। साल 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि भारत और चीन अपनी अर्थव्यवस्थाओं के माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर करने में बड़ा योगदान दिया।

मुखर्जी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था बीते एक दशक में स्थिरता के साथ बढ़ी है और अब यह 7.6 फीसदी की दर से बढ़ रही है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर दोनों देशों के 2.5 अरब लोग साथ मिलकर काम करें और अपनी गतिविधियों में सहयोग करते हैं और विविध बनाते हैं तो हमारे पास क्षमता है।’ राष्ट्रपति ने कहा कि सर्वश्रेष्ठ कदमों और विकास के अनुभवों को साझा करने से समृद्धि को स्थिर बनाने एवं आगे की दिशा में बढ़ाने के लिए बड़े मौके पैदा होंगे। उन्होंने कहा कि साल 2000 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2.9 अरब डॉलर था और अब यह बढ़कर 71 अरब डॉलर हो गया है। मुखर्जी ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि अगर दोनों देशों के बीच निवेश और सहयोग का विस्तार होता है तो बहुत अधिक संभावना है।’’

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