नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) ने पर्यावरण मंत्रालय और दिल्ली सरकार से कहा है कि वे मानव शवों के दाह संस्कार के वैकल्पिक तरीके उपलब्ध कराने संबंधी योजनाओं की पहल करें। पंचाट ने लकड़ियां जलाकर किए जाने वाले पारंपरिक दाह संस्कार को पर्यावरण के लिए घातक बताया। न्यायमूर्ति यूडी सल्वी के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि लोगों की विचारधारा बदलने और विद्युत शवदाह एवं सीएनजी जैसे पर्यावरण अनुकूल तरीके अपनाने की जरूरत है। पीठ ने कहा, ‘‘यह मामला आस्था और लोगों की जीवन दशा से जुड़ा है.. इसलिए यह नेतृत्व करने वालों और खास तौर से धार्मिक नेताओं का दायित्व है कि वह आस्थाओं का रुख एक दिशा की ओर मोड़ें और लोगों की अपनी आस्थाओं का पालन करने की विचाराधारा में बदलाव लाकर उन्हें पर्यावरण अनुकूल रीति अपनाने के लिए मनाएं।’’
पीठ ने स्थानीय निकायों सहित अधिकारियों को इस बारे में जनता को शिक्षित करने का निर्देश देते हुए कहा, ‘‘यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह लोगों की विचारधारा में बदलाव लाए और साथ ही अपने नागरिकों के लिए दाह संस्कार के पर्यावरण अनुकूल वैकल्पिक उपाय प्रदान करे।’’ एनजीटी ने कहा कि दाह संस्कार के परंपरागत उपायों से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और नदी में अस्थियां बहाने से पानी में प्रदूषण बढ़ता है। पंचाट ने कहा कि मृत्यु के बाद मानव देह का निपटान करना तब से एक समस्या रही है, जब धरती पर पहले मानव की मृत्यु हुई। यह देखना मुश्किल नहीं है कि पार्थिव शरीरों को अगर लावारिस छोड़ दिया जाए तो वह स्वास्थ्य और मानवीय आधार पर उचित नहीं होगा। पंचाट ने कहा, ‘‘इसी वजह से विश्व के धमो’ में उनकी आस्थाओं और परिस्थितियों के अनुरूप मृत्युपरांत मृत देह के निपटान के विविध तरीके मौजूद रहे हैं। जहां लकड़ी की बहुलता थी, वहां मृत देह को जलाया गया और जहां लकड़ी उपलब्ध नहीं थी, वहां मृत देह को दफनाया गया।’’ एनजीटी एडवोकेट डी एम भल्ला द्वारा दाखिल एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कहा गया था कि परंपरागत तरीकों से मृत देह के अंतिम संस्कार से वायु प्रदूषण होता है लिहाजा दाह संस्कार के वैकल्पिक उपाय उपयोग में लाए जाने चाहिएं।