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(आशु सक्सेना): देश की हिन्दी पट्टी कहे जाने वाले राज्यों में से तीन- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़- में जीत के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का केंद्रीय नेतृत्व काफी पशोपेश में है। तीन दिसंबर को चुनाव नतीज़े सामने आ गये हैं, लेकिन अभी तक किसी भी सूबे के मुख्यमंत्री की घोषणा नहीं की गयी है। दरअसल, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के सामने दिक्कत यह है कि तीनों ही राज्यों का चुनाव पार्टी ने पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा है। लेकिन चुनाव नतीज़ों के बाद जो तस्वीर उभरी है, उसमें जहां मध्य प्रदेश की जीत का श्रेय सीएम शिवराज सिंह चौहान के खाते में जा रहा है। वहीं, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जीत में पूर्व सीएम बसुंधरा राजे सिंधिया और पूर्व सीएम रमन सिंह की अहम भूमिका मानी जा रही है। इन दोनों की राज्यों में पार्टी के यह वरिष्ठ नेता एग्ज़िट पोल के बाद से ही सक्रिय हैं।

आपको याद दिला दें कि छत्तीसगढ़ में जहां सभी एग्ज़िट पोल भूपेश बघेल सरकार की वापसी की उम्मीद जता रहे थे, तब सबसे पहले सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का बयान सबसे पहले सामने आया था कि कांग्रेस 35 सीट से ज्यादा नही जीत रही है।

चुनाव नतीज़ों के बाद मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा से पहले ही रमन सिंह ने अपनी सक्रियता का संकेत भी दिया है।

उन्होंने सोशल मिडिया साइट एक्स पर एक बयान जारी करके सूबे के प्रशासनिक अधिकारियों को हिदायत दी है कि वह किसी गलत काम में शामिल नहीं होएं। वहीं राजस्थान की पूर्व सीएम बसुंधरा राजे सिंधिया ने एग्ज़िट पोल के बाद राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात करके केंद्रीय नेतृत्व को सूबे में अपनी हैसियत का संकेत दे दिया है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो चुनाव प्रचार के दौरान ही अपनी ताकत का एहसास करवाते हुए चुनावी सभाओं में जनसमूह से यह पूछना शुरू कर दिया था कि आपको मुझ जैसा सीएम चाहिए या नहीं। वहीं मंगलबार को उन्होंने एक्स पर एक वीडियो बयान में कहा, "मैं न तो पहले मुख्यमंत्री पद का दावेदार था और न ही आज हूं। एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में, मैंने हमेशा अपनी सर्वोत्तम क्षमता, वास्तविकता और ईमानदारी से समर्पण के साथ भाजपा द्वारा सौंपा गया कोई भी काम किया है।"

दरअसल, बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की दिक्कत यह है कि तीनों ही सूबों में मुख्यमंत्रियों के चयन का लोकसभा चुनाव 2024, यानि आम चुनाव 2024 पर पड़ेगा। लिहाजा अपने फैसले से पहले वह इस बात से आश्वस्त होना चाहता है कि इन सूबों में पार्टी आंतरिक कलह और व्यक्तित्व के टकराव का लोकसभा चुनाव में विपरित प्रभाव ना पड़े। इन तीनों राज्यों की लगभग सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा है। ऐसे में इन राज्यों में मुख्यमंत्री का फैसला पीएम मोदी और भाजपा के शीर्ष नेतृत्च के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

आपको याद दिला दें कि असम विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को मुख्यमंत्री का चेहरा मजबूरी में बदलना पड़ा था, क्योंकि इस सूबे में वर्तमान सीएम हेंमत बिस्वा सरमा के साथ ज्यादा विधायक थे। लिहाजा केंद्रीय नेतृत्व ने भाजपा काडर सीएम सर्वांनंद सोनोवाल को हटाकर हेंमत बिस्वा सरमा को सत्ता की बागड़ोर सौंपनी पड़ी थी। यह बात दीगर है कि सरमा कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मतभेद के चलते 2016 में भाजपा में शामिल हुए थे। इससे पहले प्रदेश भाजपा सरमा के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थी।

लिहाजा अब यह नहीं कहा जा सकता कि भाजपा पहले की तरह काडर वेस पार्टी है। अब इस पार्टी में भी दूसरे दलों से पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं को पार्टी काडर की अनदेखी करते हुए महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपे जाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। हिंदी पट्टी के तीनों सूबों में अगर भाजपा ने पार्टी काडर यानि शिवराज सिंह चौहान, बसुंधरा राजे और रमन सिंह की अनदेखी करके किसी नये चेहरे को खड़ा किया, तो आंतरिक कलह के बढ़ने की संभावना बढ़ जाएगी, जिसका पीएम मोदी को लोकसभा चुनाव में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

 

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