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मुंबई: पुणे में ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट एक बार फिर विवादों के घेरे में है, क्योंकि पिछले महीने उनके अनुयायियों के एक समूह ने मुंबई के संयुक्त चैरिटी कमिश्नर (जेसीसी) के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया था। जिसके बाद जेसीसी ने अपने पुराने आदेश को वापस लेते हुए ओआईएफ के आवेदन को खारिज कर दिया। जिसको ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) ने पहले हाई कोर्ट में और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। लेकिन अब ओआईएफ ने सुप्रीम कोर्ट से भी अपनी याचिका वापस ले ली है।

ओशो आश्रम पुणे की स्थापना से जुड़े रहे स्वामी चैतन्य कीर्ति ने 'जनादेश' को बताया कि ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) ने ओशो के जन्मदिन 11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली है। बता दें कि ओआईएफ ने क्रॉस एग्जामिनेशन के संयुक्त चैरिटी कमिश्नर (जेसीसी) के आदेश के खिलाफ पहले हाईकोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। बोम्बे हाई कोर्ट से उसकी याचिका पहले ही ख़ारिज हो चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट ने जेसीसी से इस पर रिपोर्ट मांगी थी।

(सुरेन्द्र सुकुमार): असल्लाहमालेकुम दोस्तो ! उस दिन हमको हुज़ूर साहब के पास गए हुए फिर तीन दिन हो गए थे। सलाम करके हम बैठ गए। हमने देखा कि हुज़ूर साहब पहले से ज्यादा बीमार लग रहे थे। हमने कहा अब तो हुज़ूर साहब के दुश्मनों की तबीयत कुछ ज्यादा ही नाशाज़ लग रही है। तो हल्के से मुस्कुराए, ‘मियाँ हमारा तो कोई दुश्मन है ही नहीं हाँ इन दिनों हमारी तबियत कुछ दुरुस्त नहीं है आखिर मौत को भी तो कोई बहाना चाहिए।‘

हमने कहा हुज़ूर साहब ऐसा नहीं कहिए। महाराज जी की तबीयत भी ठीक नहीं चल रही है, वो भी यही कहते हैं और अब आप भी... हमारा क्या होगा? तो बोले, "देखिए मियाँ, जो रब की राह में चलते हैं उन्हें अड़चन आने पर कोई न कोई सहारा मिल ही जाता है। देखिए जिस रास्ते पर भी जब कोई चलता है, उसे उसी रास्ते के लोग सहारा देने के लिए मिल ही जाता है। जैसे कोई ताज़िर तिज़ारत शुरू करता है, तो पुराने ताज़िर उसे बताने लगते हैं कि उन्हें कैसे करना चाहिए। कोई नया क्लर्क ऑफिस में आता है, तो सीनियर क्लर्क उसे समझाने लगते हैं।"

(सुरेन्द्र सुकुमार): असल्लाहमालेकुम दोस्तो ! अगले तीन दिन हम ख़ानक़ाह नहीं जा पाए, फिर जब गए तो हुज़ूर साहब कुछ गम्भीर मुद्रा में दिखे। सलाम करके बैठ गए। रोज की ही तरह उन्होंने ख़ादिम को आवाज़ लगाई, ‘मियाँ चाय लाइए, जनाब सुकुमार साहब तशरीफ़ फरमा हैं।' हमने चाय पी... फिर उन्होंने पान लगाया... "लीजिए नोश फ़रमाइए।" हमने सलाम करके पान मुंह में रख लिया। फिर हमने पूछा कि हुज़ूर साहब आपके दुश्मनों की तबियत कुछ नाशज़ लग रही है? तो बोले, "मियाँ हमारा तो कोई दुश्मन ही नहीं है, हाँ हमारी तबियत जरूर कुछ नाशाज़ है। लगता है कि जाने का बख़्त क़रीब आ गया है।" हमने कहा ऐसा नहीं कहिए हुज़ूर साहब। तो बोले, "जो आया है, वो तो जाएगा ही। देर सबेर से ही सही"... हाँ तो उस दिन हम हज़रत निजामुद्दीन औलिया की बात कर रहे थे।

औलिया कहा करते थे कि हज़्ज़ उम्रह से बेहतर है, ग़रीब गुरबाह की मदद करना, उन्हें खाना खिलाना, उनकी बीमारी में तीमारदारी करना, वो ऐसा करते भी थे इस वज़ह से कट्टर इस्लामी उनके बहुत से ख़िलाफ़ हो गए थे। पर इससे उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। वो मुतबातिर अपने काम में लगे रहे।

(सुरेन्द्र सुकुमार): असल्लाहमालेकुम दोस्तो ! अगले दिन हम फिर बख़्त से ख़ानक़ाह पहुंचे। हुज़ूर साहब ने गर्मजोशी से इस्तक़बाल किया, ‘आइए मियाँ सुकुमार साहब, कहिए कैसे हैं?‘ हमने कहा कि अल्लाह का क़रम है। तो बोले, ‘दुरुस्त फ़रमाया‘...फिर ख़ादिम को आवाज़ लगाई, ‘मियाँ चाय लाइए, सुकुमार साहब तशरीफ़ फ़रमा हैं।‘ हमने चाय पी फिर उन्होंने पान लगाया और हमें दिया, हमने सलाम किया और पान मुंह में रख लिया। फिर बोले, ‘मियाँ जबसे आप आने लगे हैं, यहाँ का तो माहौल ही बदल गया है।

पहले तो सिर्फ शेरोशायरी होतीं थीं, अब तो रूहानी बातें होती हैं। इन लोगों को भी मज़ा आने लगा है, सब आपका ही इंतज़ार करते हैं।‘ (उन्होंने मुरीदों की ओर इशारा करते हुए कहा) फिर बोले, "हिंदुस्तान में तो सूफ़ीइज़्म बहुत बाद में आया, पर अल्लाह के फ़ज़ल से यहाँ भी खूब पनपा और बड़े बड़े अच्छे फ़क़ीर हुए। दो तो बहुत ही मशहूर हुए। एक हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया दूसरे ख्वाज़ा मूइद्दीन चिश्ती। फिर इनके कुछ मुरीदों को भी यह मरतबा हासिल हुआ। इनमें एक थे हज़रत निजामुद्दीन औलिया के मुरीद हज़रत 'अमीर खुसरो'...!"

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