पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में शराबबंदी नीति को और प्रभावी करने के लिए कमर कस ली है। इस क्रम में उन्होंने शराबबंदी नीति पर विचार करने के लिए अपने मंत्री सहयोगियों के साथ बैठक बुलाई है। सीएम की यह बैठक जहरीली शराब के सेवन से 40 से अधिक लोगों की मौत के बाद सामने आई है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि प्रतिबंध के कारण लोग खुद को अवैध शराब के सेवन से रोक नहीं पा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार द्वारा बैठक बुलाने को इस बात के संकेत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए कि वह नीति पर पुनर्विचार करेंगे, बल्कि यह इस बात पर चर्चा करने के लिए है कि ऐसी त्रासदियों से बचने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं और नीति के किन हिस्सों में सुधार की आवश्यकता है।
जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने शानदार चुनावी जीत के साथ पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने के बाद 2015 में बिहार में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह प्रतिबंध अप्रैल 2016 से लागू हुआ था। बिहार में शराबबंदी को लेकर तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी कई बार नीतीश कुमार पर निशाना साधा है।
राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस ने बीते फरवरी माह में विधानसभा में भी शराबबंदी का मुद्दा उठाया था कि क्या राज्य में शराब प्रतिबंध से कोई मदद मिल रही है, खासकर जब इसमें राजस्व नुकसान भी शामिल है।
नीतीश कुमार ने किसी का नाम लिए बिना कहा, "मैं समाचार पत्रों में पढ़ता रहता हूं कि लोग मुझे पत्र लिख रहे हैं, लेकिन मैं उन्हें याद दिलाना चाहता हूं कि आप भी उन लोगों में से एक थे जिन्होंने इसे (शराब प्रतिबंध) सफल बनाने का संकल्प लिया था। इसलिए यदि आपको इसके कार्यान्वयन में कमी के बारे में कोई जानकारी है, तो कृपया इसे कानून लागू करने वाली एजेंसियों के साथ साझा करें।"
नीतीश कुमार ने जद (यू) की सहयोगी भाजपा के एक नेता को भी शराब पर प्रतिबंध लगाने के कदम पर सवाल उठाने के लिए नहीं बख्शा। बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल शराबबंदी नीति को लेकर लंबे समय से मुख्यमंत्री के आलोचक रहे हैं। भाजपा नेता ने हाल ही में राज्य में शराबबंदी नीति पर पुनर्विचार की मांग की थी।
मुख्यमंत्री ने बिना किसी का नाम लिए फिर से कहा, "2016 में विपक्ष में से कुछ अब मेरे साथ सरकार में हैं। किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे भी इस फैसले (शराब प्रतिबंध) का हिस्सा थे।"