नई दिल्ली: सैकड़ों लोगों को काल का शिकार बनाने वाली भोपाल गैस त्रासदी के करीब 35 साल बाद पीड़ितों का मुआवजा बढ़ने की उम्मीद जगी है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ केंद्र सरकार की उस क्यूरेटिव याचिका (सुधारात्मक याचिका) पर 9 साल बाद विचार करने के लिए सहमत हो गई है, जिसमें हादसे की दोषी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन से पीड़ितों को और मुआवजा दिलाने की गुहार शीर्ष अदालत से की गई है। शीर्ष अदालत इस याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करेगी।
यह याचिका कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन की केंद्र सरकार ने दिसंबर, 2010 में दाखिल की थी, जिसमें पीड़ितों को करीब 7413 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा दिलाने की गुहार की गई थी। साथ ही पीड़ितों को राहत उपलब्ध कराने और उनके पुनर्वास के लिए मध्य प्रदेश राज्य सरकार व केंद्र सरकार की तरफ से किए गए खर्च को भी यूनियन कार्बाइड से दिलाए जाने की मांग की गई है। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत शरण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एस रविन्दर भट्ट की पीठ 28 जनवरी को क्यूरेटिव याचिका पर विचार करेगी।
सरकार ने अपनी याचिका में यह कहा था कि शीर्ष अदालत को 14 फरवरी, 1989 के उस आदेश पर पुनर्विचार करना चाहिए, जिसमें मुआवजे की राशि 3352 करोड़ रुपये तय की गई थी। याचिका में कहा गया कि पूर्व आदेश में मृतक व घायल होने वाले लोगों की संख्या के आधार पर मुआवजे की रकम दी गई थी। लेकिन उस आदेश में पर्यावरण को हुए नुकसान को नजरअंदाज कर दिया गया था।
क्या था भोपाल गैस हादसा
02 दिसंबर, 1984 को यूनियन कारबाइड के प्लांट से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनाइड गैस का रिसाव हो गया था
5,295 लोगों की अधिकारिक तौर पर इस गैस की चपेट में आकर मरने की बात मानी गई है
15000 लोगों के मरने का दावा करते हैं भोपाल के गैर सरकारी संगठन
इस हादसे के कारण 05 लाख से ज्यादा लोग इस गैस की चपेट में आने के चलते जानलेवा रोग से ग्रस्त हो गए थे