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दतिया: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार सत्तारूढ़ भाजपा की राह आसान नहीं है। उसे बुंदेलखंड क्षेत्र की दो दर्जन से अधिक सीटों पर पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दल बसपा और सपा से कड़ी चुनौती मिल रही है। उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे बुंदेलखंड क्षेत्र में शामिल मध्य प्रदेश के जिले सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना और चंबल संभाग में दतिया एवं शिवपुरी की 30 विधानसभा सीटों में से भाजपा के पास 22 और कांग्रेस के पास आठ सीटें हैं। अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग की जातियों की बहुलता वाले इस क्षेत्र में सत्ता विरोधी लहर और अन्य स्थानीय मुद्दों के कारण भाजपा के लिये इस बार पिछले चुनावों की तरह स्थिति आसान नहीं है।

उल्लेखनीय है कि सपा ने स्थानीय परिस्थितियों की अनुकूलता को देखते हुये इन छह जिलों पर ध्यान केंद्रित किया है जबकि बसपा ने इनके अलावा अनुसूचित जाति की बहुलता वाली चंबल संभाग की मुरैना और विंध्य क्षेत्र में सतना जिले की सभी विधानसभा सीटों पर मजबूती से ताल ठोंक दी है। वर्तमान विधानसभा में बसपा के चार में दो-दो विधायक मुरैना और सतना जिले से हैं। जबकि पिछली विधानसभा में सपा की झोली में एकमात्र सीट टीकमगढ़ जिले से आई थी।

बुंदेलखंड के बसपा के क्षेत्रीय प्रभारी मुकेश अहिरवार ने बताया कि पार्टी सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बुंदेलखंड में बसपा की मजबूत स्थिति को देखते हुये पार्टी ने चारों वर्तमान एवं दो भूतपूर्व विधायकों को चुनाव मैदान में उतारा है। बसपा अध्यक्ष मायावती भी मध्य प्रदेश का चुनावी दौरा 21 नवंबर को मुरैना से शुरू करेंगी। इस क्षेत्र में वह लगातार दो दिन तक विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में जनसभाएं करेंगी। वहीं सपा ने भी निवाड़ी विधानसभा सीट से अपने पूर्व विधायक को टिकट दिया है।

'मित्रवत संघर्ष' की रणनीति

चुनाव अभियान से जुड़े सपा के एक नेता ने बताया कि बसपा और कांग्रेस के साथ प्रत्यक्ष चुनावी गठजोड़ नहीं किया जाना, भाजपा को शिकस्त देने की रणनीति का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि गठबंधन होने पर सभी सीटों पर तीनों दलों का कोई एक प्रत्याशी चुनाव मैदान में होता, जो कि इस क्षेत्र के जटिल जातीय समीकरणों के लिहाज से उपयुक्त नहीं था। इसलिये तीनों दलों ने भाजपा को त्रिकोणीय मुकाबले में घेरने के लिये हर सीट पर अपने उम्मीदवार उतारते हुये 'मित्रवत संघर्ष' की रणनीति अपनाई है। मध्य प्रदेश कांग्रेस की बुंदेलखंड इकाई के वरिष्ठ नेता बालकराम यादव ने भी भाजपा के इस गढ़ में क्षेत्रीय दलों के साथ साझा रणनीति के तहत कामयाबी पूर्वक सेंधमारी करने का भरोसा व्यक्त करते हुये कहा कि सत्ताधारी दल का ‘अति आत्मविश्वास’ इस बार कुछ और ही तस्वीर पेश करेगा।

उन्होंने कहा ‘‘भाजपा जिस विकास की बात कर रही है उसकी हकीकत सिर्फ शहरी क्षेत्रों में कुछ इमारतों के निर्माण तक सीमित है। ग्रामीण क्षेत्रों में सूखे से बदहाल किसान, बेरोजगारी के कारण पलायन को मजबूर नौजवान और अनुसूचित जाति जनजाति उत्पीड़न निरोधक कानून में ढील देने के मुद्दे पर सवर्ण जातियों में भाजपा के प्रति जबरदस्त नाराजगी इस बार प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं। इस नाराजगी को प्रकट करने के लिये जनता को यह चुनाव सौगात के रूप में मिला है। चुनाव परिणाम में इसकी झलक साफ दिखेगी।’’

भाजपा का रुख

हालांकि मध्य प्रदेश सरकार में वरिष्ठ मंत्री और दतिया से भाजपा के विधायक नरोत्तम मिश्रा हालांकि सत्ता विरोधी लहर और अन्य स्थानीय मुद्दों को नकारते हुये इस चुनाव को पार्टी के लिये पिछले चुनाव से ज्यादा मुफीद बताते हैं। बुंदेलखंड में भाजपा के गढ़ को ध्वस्त करने में बसपा, सपा और कांग्रेस की साझा रणनीति के सवाल पर आत्मविश्वास से लबरेज मिश्रा का कहना है ‘‘चुनाव के बाद इन सभी दलों को ढूंढ़ते रह जाओगे।’’ उनका कहना है कि पिछले तीन चुनाव में भी सपा, बसपा सहित अन्य दलों ने इस तरह के प्रयास किये थे लेकिन विकास के मुद्दे के सामने इनकी रणनीति को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया था। उनकी दलील है कि पिछले पांच सालों में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा बुंदेलखंड क्षेत्र में किये गये ऐतिहासिक विकास कार्यों को सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के लोगों ने भी शिद्दत से महसूस किया है। इस वास्तविकता को मध्य प्रदेश के लोगों में मिली स्वीकार्यता ही भाजपा के आत्मबल का प्रमुख आधार है।

सीटों का गणित

वर्तमान विधानसभा में बुंदेलखंड में सर्वाधिक आठ विधानसभा सीट वाले सागर जिले की सात सीटें भाजपा के पास और एक कांग्रेस के पास है। छतरपुर जिले की छह में से पांच सीट भाजपा के पास और एक कांग्रेस के पास, टीकमगढ़ जिले की पांच सीट में से तीन भाजपा और दो कांग्रेस के पास है। शिवपुरी जिले की पांच में से तीन सीट पर कांग्रेस और दो सीट पर भाजपा, पन्ना जिले की तीन सीटों में से दो पर भाजपा और एक पर कांग्रेस तथा दतिया की तीनों सीट पर भाजपा का कब्जा है।

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