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मुंबई: महाराष्ट्र विधान परिषद में 12 लोगों को सदस्य मनोनीत करने के उद्धव ठाकरे सरकार के प्रस्ताव को राज्यपाल बीएस कोशियारी द्वारा अब तक मंजूरी नहीं दिए जाने के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अहम बात कही। हाईकोर्ट ने कहा कि राज्यपाल उचित समय में राज्य सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार या खारिज कर सकते हैं। प्रस्ताव को मंजूर या खारिज करना उनका संवैधानिक दायित्व है। 

12 लोगों को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने का प्रस्ताव ठाकरे मंत्रिमंडल ने राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा है। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपंकर दत्ता व जस्टिस जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने कहा कि यह राज्यपाल का कर्तव्य था कि वे बात करते और प्रस्ताव के बारे में उचित समय में मुख्यमंत्री को अपनी राय से अवगत कराते। 

इसके साथ ही कोर्ट ने नासिक के रहने वाले रतन सोली की याचिका पर आदेश पारित कर दिया। याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट राज्यपाल को ठाकरे सरकार द्वारा नवंबर 2020 में भेजे गए 12 नामों को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने का आदेश दे। राज्य सरकार को उम्मीद थी कि राज्यपाल 15 दिन में प्रस्ताव को मंजूरी दे देंगे।

आठ माह बीत गए, बिना देरी किए दायित्व निभाना चाहिए
हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में आठ माह बीत गए हैं। हमारे अनुसार यह पर्याप्त समय है। यह महत्वपूर्ण है कि इस मामले में राज्यपाल को बगैर देरी किए अपना संवैधानिक दायित्व निभाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह सही है कि राज्यपाल अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, लेकिन हमें उम्मीद व विश्वास है कि संवैधानिक दायित्व की पूर्ति की जाए। 

बता दें, 12 एमएलसी की नियुक्ति में देरी को लेकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यिारी महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ महाविकास अघाड़ी सरकार के निशाने पर हैं। इस साल के आरंभ में उप मुख्यमंत्री व एनसीपी नेता अजित पवार ने कोश्यिारी पर तंज किया था। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि सरकार को कोर्ट नहीं जाना पड़ेगा। 

 

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