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(आशु सक्सेना) 2019 नजदीक आने के साथ ही देश का माहौल बदलता जा रहा है। जम्मू कश्मीर के बहाने जहां सांप्रदायिक भावनाओं को उभारने का प्रयास तेज हुआ है। वहीं हिंदु मतों को एकजुट करने के लिए एक बार फिर राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को जोरशोर से उठाया जा रहा है। फिलहाल देश में निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी, मंहगाई, सुरक्षा और विकास जैसे अहम मुद्दे कहीं नेपथ्य मे खो गये हैं। यह सबकुछ ऐसे चल रहा है, जैसे किसी ने पहले से इसकी स्क्रिप्ट लिख रखी हो। पिछले दिनों मोदी सरकार ने अपने चार साल पूरे होने का जश्न काफी जोरशोर से मनाया। सभी मंत्रालयों ने पत्रकार वार्ता आयोजित करके अपने मंत्रालय की उपलब्धियों का प्रजेंटेशन दिया। इस प्रदर्शन में काफी सरकारी पैसा खर्च हुआ। 

मोदी सरकार के पांचवें साल में प्रवेश करते ही भाजपा ने सबसे पहले जम्मू कश्मीर की अपनी सरकार को कुर्बान कर दिया। मोदी सरकार ने इस कुर्बानी को राष्ट्रभक्ति से जोड़ने का प्रयास किया है। यह बात दीगर है कि साल 2014 से लगातार सूबे की चुनी हुई सरकार का भाजपा हिस्सा रही। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यपाल शासन लगने के बाद सूबे में पहुंच कर जम्मू के साथ भेदभाव का आरोप गढ़कर समूचे मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की।

उधर, उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भाजपा के पूर्व सांसद राम विलास वेदांती ने सीएम योगी के साथ मंच साझा करते हुए एलान कर दिया कि 2019 से पहले राममंदिर निर्माण का काम शुरू हो जाएगा। इसके लिए वह किसी अदालत के फैसले का इंतजार नही करेंगे।

मोदी सरकार की दिक्कत यह है कि ​अच्छे दिन का ख्याब दिखाकर जिन नारों के साथ वह पूर्ण बहुमत से केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई थी। उन पर वह किसी भी तरह खरी नही उतरी है। 2014 के चुनाव में भाजपा की जीत में दो अहम मुद्दे भ्रष्टाचार और मंहगाई थे। इन दोनों ही मोर्चों पर मोदी सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। आपको बता दें कि भ्रष्टाचार के संबंध में जारी अंतर्राष्ट्रीय सर्वे की एक रिर्पोट में भारत की रैंकिग में ईजाफा हुआ है। यानि चार साल बाद भी ज़मीन पर उसका कोई असर नज़र नही आ रहा है। इस दिशा में किये गये सबसे महत्वपूर्ण नोटबंदी के फैसला का भी विपरित असर हुआ है।

वहीं मंहगाई पर अंकुश लगाने में मोदी सरकार पूरी तरह असफल रही है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल मंहगा होने के चलते पेट्रोल और डीज़ल दाम अपने चरम पर पहुंच गये। पडौसी देशों में पेट्रोल और डीज़ल की कीमत यहां से कम है। दिलचस्प पहलू है कि उन देशों में भी कीमत यहां से कम है, जिन देशों को पेट्रोल और डीज़ल भारत से निर्यात होता है। अगर यूपीए और मोदी सरकार के कार्यकाल में कच्चे तेल का अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिहाज से तुलनात्मक आंकलन किया जाए। तो मौजूदा सरकार के कार्यकाल में कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट आयी थी। यूपीए सरकार के कार्यकाल में 139 डालर प्रति बैरल को पार कर चुकी कच्चे तेल की कीमतों में मोदी सरकार के सत्ता पर काबिज होते ही भारी गिरावट आयी और यह कीमत न्यूनतम 29 डालर पर आकर टिकी।

आपको याद दिला दें कि उस वक्त पीएम मोदी का एक बयान काफी चर्चित हुआ था। मोदी ने कहा था कि अब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम हुई, तो लोग कह रहे हैं कि भई मोदी बहुत किस्मत वाला है। भाईयों बहनों आपको किस्मत वाला चाहिए या फिर बिना किस्मत वाला। लेकिन अब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 80 डालर प्रति बैरल के आसपास पहुंचते ही देश में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों ने यूपीए सरकार का भी रिकार्ड तोड़ दिया है।

भाजपा और आरएसएस ने पिछला लोकसभा चुनाव पूरी तरह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी के चेहरे पर लड़ा था। भाजपा के सभी चुनाव नारे मोदी को केंद्र में रख कर तैयार किये गये थे। उनमें अच्छे दिन आने वाले है नारे के साथ बहुत हुई मंहगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार के नारे ने लोगों को काफी आकर्षित किया था। मोदी सरकार को एहसास है कि पिछले चुनाव में किये गये वादों को दोहराने से पुन: सत्ता हासिल करना नामुमकिन है। लिहाजा अब कोई नया मुद्दा उछाला जाए। उसी रणनीति के तहत अब कश्मीर और राम मंदिर के मुद्दे को गरमाया जा रहा है। यहां मोदी के चुनाव लड़ने के इतिहास पर एक नजर डालनी होगी। 2002 पहली बार मोदी ने संसदीय राजनीति में कदम रखा था। उन्हें गुजरात में भाजपा की डुबती नैया को पार लगाने जिम्मेदारी सौंपी गई।

उस वक्त जब अयोध्या, काशी और मथुरा वाले उत्तर प्रदेश से भाजपा की विदाई हो रही थी। तभी इत्तफाक से गुजरात में गौधरा कांड़ हो गया और इसके बाद सूबे में हुए चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक 127 सीटों पर कब्जा किया। मुख्यमंत्री मोदी ने सूबे का अगला चुनाव विकास को मुद्दा बना कर लड़ा और इस चुनाव में उनको जबरदस्त झटका लगा और दस सीट के नुकसान के साथ 117 पर सिमट गये। नतीजतन मोदी ने 2012 का चुनाव देश के भावी प्रधानमंत्री का शगुफा उछाल कर जिता था। इस चुनाव में भी वह पार्टी के पुराने आंकड़े को बरकरार रखने में कामयाब नही हुए थे। 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में जबरदस्त चुनाव प्रचार के बावजूद पीएम मोदी अपने गृह प्रदेश में 100 आंकड़ा नही छू सके हैं। लिहाजा मोदी की लोकप्रियता में गिरावट की इससे बेहतरीन मिसाल नही मिल सकती।

लिहाजा अपने चुनावी अनुभव से मोदी को एहसास है कि 2019 में विजय पताका फहराने के लिए विकास का एजेंडा काम नही आएगा। इसके लिए उन्हें भाजपा और आरएसएस की लाइन को अख्तियार करते हुए हिंदु मतों के ध्रुवीकरण को अंजाम देना है। बिहार के मुख्यमंत्री नी​तीश कुमार ने सूबे में भाजपा के साथ सरकार चलाते हुए सार्वजनिक मंच से आरोप लगाया कि देश में वोट की खातिर जातीय और संप्रदायिक तनाव का माहौल बनाया जा रहा हैं। आपको याद दिला दें कि नीतीश कुमार, पीएम मोदी के धुर विरोधी रहे हैं। मोदी को भाजपा का पीएम उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ लिया था। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उन्होंने मोदी के ​खिलाफ जबरदस्त प्रचार किया। लेकिन अब बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य में वह एक बार फिर भाजपा के खिलाफ मुखर होते नजर आ रहे हैं।

लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का सामना करना है। इन तीनों ही राज्यों में भाजपा सत्ता पर काबिज है।लिहाजा इन राज्यों में भाजपा को सत्ता विरोधी माहौल के साथ साथ मोदी की घटती लोकप्रियता का खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। इन तीनों ही राज्यों में भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है। इन राज्यों में कांग्रेस ने भाजपा को शिकस्त देने के लिए भाजपा विरोधी मतों को एकजुट रखने की रणनीति को अंजाम देने की रणनीति अपनाई है। कांग्रेस ने इन राज्यों में भाजपा विरोधी समान विचारधारा वाली पार्टियों को महागठबंधन में शामिल करने का रास्ता खुला रखा है। जिसके चलते इन राज्यों का चुनाव भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।

देश में बन रहे सांप्रदायिका माहौल का मतदाताओं पर कितना असर हो रहा है। भाजपा और आरएसएस हिंदु मतों के ध्रुवीकरण में किस हद तक सफल रहे हैं। यह इन तीन राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद तय हो जाएगा। इन राज्यों में भाजपा की पराजय निश्चित रूप से मोदी सरकार की उलटी गिनती शुरू होने की ओर संकेत होगा। लिहाजा भाजपा के स्टार प्रचारक पीएम मोदी इन राज्यों में भी अपनी पूरी ताकत झौंक देंगे। यहांं यह बताना ज़रूरी है कि देश के संसदीय इतिहास में पीएम मोदी के अलावा अन्य किसी भी प्रधानमंत्री ने सूबे के चुनावों में इतनी दिलचस्पी नही ली। सभी प्रधानमंत्रियों ने विधानसभा चुनावों में प्रचार की रस्म अदायगी तक खुद को सीमित रखा था। लेकिन मोदी ने इन चुनावों को अपनी प्रतिष्ठा बनाना शुरू किया।

कश्मीर और राम मंदिर का मुद्दा उछाल कर भाजपा तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव से पहले का सेमी फाइनल खेल रही है। इन चुनाव नतीजों के बाद 2019 में होने वाले फाइनल मैच की तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाएगी।

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