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(आशु सक्सेना) मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और एनडीए के खिलाफ विपक्ष के महागठबंधन की कोशिशें तेज हो गई हैं। सूबे में महागठबंधन के लिए कांग्रेस, बसपा और सपा के बीच शुरूआती दौर की बातचीत हुई है। इस बातचीत में इस बात पर सहमति बन गई है कि भाजपा विरोधी मतों के बिखराव को रोकने के लिए समान विचारधारा वाले दलों को एकजुट होकर चुनावी मुकाबला करना चाहिए।

सूत्रों का कहना है कि ज्यादा सीटें हासिल करने के लिए सभी दलों ने कोशिशें तेज कर दी है। इसी रणनीति के तहत इस मुहिम को उस वक्त एक झटका लगता नज़र आया, जब मायावती की पार्टी बसपा के एक प्रदेश पदाधिकारी ने मध्य प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ने की बात कही।दरअसल, प्रदेश के संभावित महागठबंधन से जुड़े नेताओं का मानना है कि बातचीत अभी शुरुआती स्तर पर है और समझौते के लिए सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है। लिहाजा अंतत: समझौता हो जाएगा।

सूत्रों के मुताबिक प्रदेश में संभावित महागठबंधन के लिए बसपा, सपा समेत अन्य छोटी पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर मंथन जारी है। सभी दल सीटों के बंटवारे में ज्यादा हिस्सेदारी के लिए दबाव बना रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस समर्थित महागठबंधन और सत्तारूढ़ भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होगा। जिसमें भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना होगा।

कांग्रेस की कोशिश है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश की सत्ता भाजपा से छीनी जाए। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कांग्रेस को इस सूबे में भी भाजपा विरोधी मजबूत गठबंधन बनाना होगा। दरअसल, मध्य प्रदेश में बीएसपी सभी 230 सीटों पर लड़ने की बात कर रही है।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि बसपा की यह कांग्रेस दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है। बीएसपी प्रमुख मायावती फिलहाल इस मसले पर चुप हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि ये अधिकतम सीटें हासिल करने के लिए दबाव की राजनीति है। सूत्र बताते हैं कि बीएसपी चाहती है कि उसे 30 सीट मिले। वहीं, कांग्रेस 14-15 सीटें देना चाहती है। सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी ने भी कम से कम 10 सीटों पर दावेदारी ठौकी है। वहीं, मत विभाजन को रोकने के लिए कांग्रेस गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को भी कुछ सीटें देना चाहती है। इस बार कांग्रेस को कांग्रेस को एहसास है कि 15 साल से सत्ता काबिज भाजपा को उखाड़ने की मुहिम में बसपा समेत अन्य दलों को साथ जोड़ना ज़रूरी है।

दरअसल उत्तर प्रदेश से सटे प्रदेश के जिलों में समाजवादियों का भी प्रभाव माना जाता है। लिहाजा दलितों के साथ साथ पिछड़ों और अन्य पिछड़ों को साथ जोड़ना राजनीतिक हकीकत है। पिछले आंकड़ों पर अगर नजर डालें, तो कांग्रेस के साथ बसपा,सपा और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के एकजुट होने की स्थिति में सत्तारूढ़ भाजपा को कड़ी टक्कर दी जा सकती है। क्योंकि इन सभी दलों का पिछले चुनाव में कुल मिलने वाला वोट अधिकांश सीटों पर भाजपा से ज्यादा है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद पार्टी को नई शक्ल प्रदान की है। सूबे में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद उसने भाजपा विरोधी तीसरे नंबर की क्षेत्रीय पार्टी जेडीएस को सत्ता सौंप कर भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने की शुरूआत की है। मध्य प्रदेश में बसपा, सपा के सा​थ प्रदेश स्तर पर महागठबंधन को अमलीजामा पहनाना कांग्रेस अध्यक्ष की 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को चुनौती देने की दिशा में बहुत बड़ी सफलता होगी।

सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस की कोशिश है कि सहयोगी दलों को 30 सीटों में समेटा जाए। जबकि सहयोगी कुछ ज्यादा सीटों पर दावेदारी कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि सीटों के बंटवारे के वक्त सभी दलों के बीच आम सहमति बन जाएगी। क्यों​कि सिद्धांत: सभी दलों ने एकजुट होकर भाजपा को टक्कर देने पर सहमति व्यक्त की है। जिसकी एक झलक कर्नाटक में जेडीएस—कांग्रेस गठबंधन सरकार के शपथग्रहण समारोह में नजर आई थी।

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