नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर पद से इस्तीफा देने के 18 महीनों बाद एक बार फिर उर्जित पटेल की सरकार में वापसी हुई है। शुक्रवार को पटेल को भारत के प्रमुख आर्थिक थिंक टैंक 'राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान' (एनआईपीएफपी) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। एनआईपीएफपी ने एक बयान में कहा कि पटेल लगभग छह सालों तक एनआईपीएफपी की कमान संभालने वाले पूर्व नौकरशाह विजय केलकर की जगह लेंगे। वह 22 जून को पद संभालेंगे और उनका कार्यकाल चार साल का होगा।
एनआईपीएफपी वित्त मंत्रालय, पूर्ववर्ती योजना आयोग और कई राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित एक स्वायत्त निकाय है। यह एक स्वतंत्र गैर-सरकारी निकाय है और केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों को सलाह देते हुए सार्वजनिक नीति में अनुसंधान करता है। गवर्निंग काउंसिल का पटेल को नियुक्त करने का निर्णय इस बात का संकेत है कि केंद्र उनके अनुभव का इस्तेमाल कर कोविड-19 से उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों का सामना करना चाहती हैं।
एनआईपीएफपी की गवर्निंग काउंसिल, जिसमें राजस्व सचिव, आर्थिक मामलों के सचिव और केंद्रीय वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार शामिल हैं, इन सभी लोगों ने नीति आयोग, आरबीआई और तीन राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर गुरुवार को एक बैठक की। बैठक में केलकर द्वारा पटेल को अध्यक्ष के रूप में नामित करने वाले निमंत्रण पर सहमति बनी।
वहीं, रथिन रॉय ने एनआईपीएफपी के निदेशक के पद से इस्तीफा दे दिया है। इसके अलावा सुमित बोस ने एनआईपीएफपी के उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दिया है। गवर्निंग काउंसिल द्वारा एक नए निदेशक की नियुक्ति के लिए एक खोज और चयन समिति नियुक्त करने की उम्मीद है। रॉय से जब उनके इस्तीफे को लेकर संपर्क किया गया तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। वहीं, पूर्व वित्त सचिव बोस ने अपने इस्तीफे को लेकर कहा कि उन्होंने पद से इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि वह कोलकाता शिफ्ट हो गए हैं।
पटेल ने पांच सितंबर, 2016 को आरबीआई के 24वें गवर्नर के रूप में पद संभाला था। उन्हें भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने रघुराम राजन के उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया था। उर्जित के नेतृत्व में आरबीआई और सरकार के बीच संबंध विवादास्पद रहे। निजी कारणों का हवाला देते हुए, पटेल ने 10 दिसंबर, 2018 को आरबीआई के गवर्नर के पद से इस्तीफा दे दिया। उस दौरान उनका 10 महीने का कार्यकाल बचा हुआ था। उनके कार्यकाल के दौरान आरबीआई और सरकार कई नीति-संबंधित मामलों पर विरोधाभासी रहे, जिनमें सरप्लस ट्रांसफर शामिल है।