नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश लगातार दूसरे साल देश का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य है। इस साल यानी पेराई सत्र 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में प्रदेश में चीनी का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 16-17 फीसदी बढ़ोतरी के साथ 101 लाख टन रहने का अनुमान है। पिछले साल प्रदेश में 87 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। इस साल महाराष्ट्र में चीनी का उत्पादन 74 लाख टन रहने का अनुमान है जोकि देश का दूसरा प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य है।
चीनी उद्योग का शीर्ष संगठन इंडियन सुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि इस साल चीनी का उत्पादन और खपत तकरीबन एक समान है इसलिए आयात करने की जरूरत नहीं होगी।
उधर, उत्तर प्रदेश के एक मिल संचालक ने कहा कि पिछले साल गन्ना किसानों को समय पर भुगतान होने से किसानों के लिए यह लाभकारी फसल रही है जिसके कारण किसानों ने इसकी खेती में दिलचस्पी ली है। साथ ही, रिकवरी में इजाफा होने से मिलों को भी फायदा हो रहा है। लेकिन बीते कुछ दिनों में चीनी की कीमतों में अप्रत्याशित गिरावट से चीनी मिलों के लिए मुसीबत पैदा हो गई है।
त्रिवेणी चीनी मिल के प्रमुख तरुण साहनी का कहना है कि उत्तर प्रदेश में चीनी की खपत महज 35 लाख टन है और बाकी 65 लाख टन से ज्यादा चीनी अन्य राज्यों द्वारा खरीदी जाती है। इस समय प्रदेश में चीनी की मिल दर 3400 रुपये प्रति क्विं टल के आसपास आ गई है जबकि उपभोक्ता मूल्य में कोई ज्यादा कमी नहीं आई है। ऐसे में सरकार को मिल दरों के अलावा उपभोक्ता मूल्यों को भी देखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मिलों को प्रति क्विं टल चीनी उत्पादन में करीब 3500 रुपये लागत आती है। उन्होंने कहा कि अगर इस तरह मिल दरों में गिरावट आई तो फिर नकदी की समस्या पैदा हो जाएगी क्योंकि मिलें लागत से कम दर पर चीनी बेचने को तैयार नहीं होंगी। जिसके फलस्वरूप किसानों को गन्ने के मूल्य का भुगतान करने में मिलों को समस्याएं आएंगी।
उत्तर प्रदेश में इस समय गन्ने की रिकवरी 10.4 की आ रही है जबकि पूरे सीजन की रिकवरी 9.8 के आसपास रही है। साहनी ने कहा कि सरकार को चीनी के आयात शुल्क को 50 फीसदी से बढ़ाकर 60 फीसदी कर देना चाहिए।