नई दिल्ली: आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं। बुधवार को बैठी प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने भी माना है कि देश में स्लोडाउन है। इसे दूर करने के लिए परिषद ने जरूरी उपायों की भी समीक्षा की। विकास तेज करने के लिए अगले छह महीनों के लिए 10 विषयों का चयन किया गया है।
पिछले हफ्ते रिजर्व बैंक ने 2017-18 की अनुमानित आर्थिक विकास दर घटाकर 6.7 फीसदी कर दी। अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी इस साल के लिए अनुमानित आर्थिक विकास दर को घटाकर 6.7 फीसदी कर दिया है और नोटबंदी और जीएसटी को इसकी वजह करार दिया है।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रथिन राय ने कहा, 'अर्थव्यवस्था में मंदी है। हम उसके कारणों की समीक्षा करेंगे। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। हम सब चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था की विकास दर दोबारा 7 फीसदी से उपर जाए।' हालांकि रथिन राय ने दावा किया कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के दावे 80 फीसदी तक गलत साबित होते हैं।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की बैठक में अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात और उसे दोबारा पटरी पर लाने के लिए ज़रूरी उपायों की समीक्षा की गई। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकारों ने विकास तेज करने को अगले छह महीनों के लिए दस विषयों का चयन किया है। इसमें आर्थिक विकास दर, रोज़गार से लेकर कृषि सेक्टर तक शामिल हैं।
आर्थिक सलाहकारों ने प्राथमिकता सूची में असंगठित क्षेत्र, मौद्रिक नीति, लोक व्यय, आर्थिक संस्थानों और सोशल सेक्टर को भी शामिल किया है। एक बाद महीने के बाद प्रधानमंत्री के सलाहकारों की अगली बैठक होगी, जिसमें इन प्राथमिकताओं पर विस्तार से विचार होगा।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन, बिबेक देबराय ने कहा, 'परिषद के सदस्यों में इस बात पर सहमति है कि विकास दर में गिरावट कई कारणों की वजह से है।' पहले आरबीआई और अब आईएमएफ ने 2017-18 के लिए भारत के अनुमानित आर्थिक विकास की दर को घटा दिया है।
साफ है, कमज़ोर पड़ती अर्थव्यवस्था मोदी सरकार और उसके सलाहकारों के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है। अब देखना होगा कि अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए आर्थिक सलाहकार पीएम के सामने क्या रोडमैप पेश करते हैं।