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मुंबई: तेल निर्यातक देशों के संगठन द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती की घोषणा तथा रुपये की विनिमय दर में तीव्र गिरावट के मद्देनजर भारत के लिए आयातित कच्चे तेल के दाम में वृद्धि होगी हालांकि तेल सब्सिडी बोझ बजटीय अनुमान के अंदर ही रहने की संभावना है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इक्रा की रिपोर्ट के अनुसार अगर कच्चा तेल 55 डालर प्रति बैरल पर रहता है तो तेल आयात खर्च चालू वित्त वर्ष की शेष अवधि में चार अरब डालर बढ़ जाएगा। इक्रा कारपोरेट सेक्टर रेटिंग के प्रमुख के. रविचंद्रन ने कहा कि इससे कंपनियों के लिए सब्सिडी वाले एलपीजी और केरोसीन पर सकल सलाना सब्सिडी (अंडर-रिकवरी) 1,200-1,500 करोड़ रुपये बढ़ेगी। उल्लेखनीय है कि लंबे समय के बाद पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) ने 30 नवंबर को जनवरी से कच्चे तेल के उत्पादन में कुल मिला कर दैनिक 12 लाख बैरल कमी करने पर सहमति जतायी है। इस निर्णय से वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल का दाम 5 प्रतिशत बढ़ा है। इससे ब्रेंट कच्चे तेल का दाम 54 डालर बैरल पहुंच गया। उन्होंने कहा, ‘चालू वित्त वर्ष की शेष अवधि में कच्चे तेल का दाम अगर 50 से 60 डालर प्रति बैरल रहता है तो तेल सब्सिडी पूरे वर्ष के दौरान 17,000 से 19,000 करोड़ रुपये रहेगी। यह बजटीय आवंटन 27,000 करोड़ रुपये के भीतर है। इस प्रकार, वित्तीय स्थिति पर प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है।’ पहली छमाही में सकल अंडर-रिकवरी 7,830 करोड़ रुपये रहा।

आयात बिल के बारे में रविचंद्रन ने कहा कि अगर चालू वित्त वर्ष की शेष अवधि में तेल का दाम 55 डालर बैरल रहता है तो कच्चे तेल के दाम में वृद्धि तथा रपये की विनिमय दर में गिरावट से शुद्ध कच्चे तेल तथा पेट्रोलियम उत्पादों का आयात बिल चार अरब डालर बढ़ेगा।

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