ढाका: बांग्लादेश ने 1971 के मुक्ति संग्राम में शहीद हुए बुद्धिजीवियों को आज श्रद्धांजलि दी। राष्ट्रपति अब्दुल हामिद और प्रधानमंत्री शेख हसीना समेत हजारों लोगों ने राजधानी में इन शहीदों को श्रद्धांजलि दी। ढाका स्थित शहीद बुद्धिजीवी स्मारक पर आयोजित राजकीय समारोह में हामिद और हसीना ने शहीदों के सम्मान में खड़ा होकर मौन रखा। सेना ने तुरही से ‘लास्ट पोस्ट’ की धुन बजाई। पाकिस्तानी सैनिक और उनके बांग्ला भाषी राजाकर सहयोगियों और अन्य सहायक बलों ने नौ महीने तक चले युद्ध के दौरान स्वतंत्रता समर्थक बुद्धिजीवी समुदाय के कई सदस्यों का नरसंहार किया था। इसमें चिकित्सक, प्रोफेसर, लेखक और शिक्षक शामिल थे। बताया जाता है कि मुक्ति संग्राम में 10 लाख से अधिक लोग मारे गए थे। आक्रमणकारी पाकिस्तानी बलों पर अंतिम जीत से महज दो दिन पहले 14 दिसंबर 1971 को अल-बद्र और अल शम्स मिलिशियाओं ने सम्मानित शिक्षाविदों और पेशेवर लोगों की हत्या के लिए व्यवस्थित अभियान चलाया था। तत्कालीन बांग्लादेश सरकार और विजयी स्वतंत्रता सेनानियों को हालांकि बर्बर नरसंहार की जानकारी 16 दिसंबर 1971 के बाद मिली। राष्ट्र ने आज ऐसे दिन शहीद बुद्धिजीवियों को याद किया है, जब ज्यादातर शीर्ष अपराधियों को पिछले तीन वषरें में युद्ध के दौरान मानवता के खिलाफ अपराधों के आरोपों में फांसी दी जा चुकी है। राजधानी के मीरपुर इलाके में शहीद बुद्धिजीवियों की याद में बनाए गए स्मारक को तैयार किया गया था। राष्ट्रपति हामिद और प्रधानमंत्री हसीना ने वहां पुष्पचक्र चढ़ाकर शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि दी। तत्कालीन अमेरिकी प्रेस कोर ने बंगाली बुद्धिजीवियों की जघन्य हत्या के बारे में रिपोर्ट किया था। यह नरसंहार युद्ध के अंतिम दिनों में हुआ था।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कम से कम 125 लोग ढाका में एक खेत के बाहर मृत पाए गए। इनमें चिकित्सक, प्रोफेसर, लेखक और शिक्षक शामिल थे।’