ताज़ा खबरें
केजरीवाल के खिलाफ कार्यवाही पर रोक से दिल्ली हाईकोर्ट का इंकार

राजकोट: शहर में अप्रैल से तीन लोगों की हत्या करने वाले कथित सीरियल हत्यारे हितेश दलपत रामावत ने जाहिरा तौर पर दो पीड़ितों की पत्थर से हत्या करने के पहले उनके साथ यौन संबंध स्थापित किए थे। पुलिस ने आज यह जानकारी दी। रामावत को कल जामनगर से गिरफ्तार किया गया। उसे ‘‘स्टोन किलर’’ कहा जाता था क्योंकि उसने पीडितों के सिर पर पत्थर से हमला कर हत्याओं को अंजाम दिया था। नगर पुलिस आयुक्त अनुपमसिंह गहलोत ने कहा कि ऐसे सबूत मिले हैं जिससे पता लगता है कि उसने हत्या करने के पहले उनके साथ यौन संबंध स्थापित किए थे। गहलोत ने कहा कि वह लूट के इरादे से और लोगों की हत्याओं की योजना बना रहा था। उन्होंने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि करीब 12 साल पहले एक अज्ञात व्यक्ति ने रामावत के साथ यौन दुर्व्यवहार किया था और उसे पैसे की पेशकश की थी। इसके बाद वह पैसे कमाने के लिए समलैंगिक गतिविधि में लिप्त हो गया। आयुक्त ने कहा कि वह पीडितों की हत्या के बाद उसी के मोबाइल फोन से उसके घर वालों को जानकारी देता था। उन्होंने कहा कि इससे उसका पता लगाने में मदद मिली।

अहमदाबाद: एक सुनवाई अदालत के फैसले को पलटते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने 2002 में जिले के वीरमगाम कस्बे में भड़के दंगे के मामले में सात लोगों को हत्या का दोषी करार दिया है। गोधरा कांड के बाद ये दंगे भड़के थे। उच्च न्यायालय ने हत्या के दोषी करार दिए गए इन सातों लोगों को 25 जुलाई को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया है। 25 जुलाई को ही अदालत उन्हें सजा सुनाएगी। वीरमगाम कस्बे में हुए दंगे के मामले में कुल 10 आरोपी थे, जिसमें से दो को सुनवाई अदालत ने हत्या का दोषी करार दिया था और चार को हल्के आरोपों में दोषी ठहराया गया था, जबकि चार अन्य को बरी कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने सुनवाई अदालत के उस आदेश को भी बरकरार रखा, जिसके तहत दो आरोपियों को हत्या का दोषी करार दिया गया था और एक अन्य आरोपी देवाभाई सामतभाई भारवाड़ को बरी कर दिया था। इस निर्णय से, न्यायमूर्ति हर्ष देवानी और न्यायमूर्ति बिरेन वैष्णव ने सोमवार को सुनाए गए अपने फैसले में कुल नौ लोगों को हत्या के जुर्म में दोषी करार दिया है, जबकि एक को बरी कर दिया है। दंगे के इस मामले में तीन लोग मारे गए थे। अदालत 25 जुलाई को दोषियों की सजा की अवधि पर फैसला सुनाएगी।

अहमदाबाद: गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले में अदालत द्वारा सुनाए गए फैसले पर असंतोष जाहिर करते हुए, इस हत्याकांड में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने आज  (शुक्रवार) कहा कि अदालत ने उनके साथ अन्याय किया है। उन्होंने यह भी कहा कि वह विशेष एसआईटी अदालत के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जाएंगी। विशेष एसआईटी अदालत ने आज अपने फैसले में गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले के 11 दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई है। जकिया इस मामले के एक दोषी को दस साल की सजा और अन्य 12 को सात सात साल की सजा सुनाए जाने से खास तौर पर नाखुश हैं। इन दोषियों को अदालत ने कम गंभीर अपराधों का दोषी ठहराया था जिनमें हत्या शामिल नहीं है। जकिया ने 36 अन्य को इस मामले में बरी किए जाने पर भी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने संवाददाताओं से कहा ‘मुझे समझ नहीं आया कि क्यों 11 दोषियों को उम्र कैद और कुछ को केवल सात साल या दस साल कैद की सजा सुनाई गई। यह चयनित पहल (सलेक्टिव एप्रोच) क्यों अपनाई गई जबकि वह सभी लोग गुलबर्ग सोसायटी के अंदर लोगों की जान लेने वाली भीड़ का हिस्सा थे। यह गलत न्याय है। अदालत ने मेरे साथ न्याय नहीं किया।’ जकिया ने कहा ‘मैं सोसायटी में ही थी जब हिंसक भीड़ ने मेरे पति (अहसान जाफरी) को क्रूरतापूर्वक मारा था।

अहमदाबाद: साल 2002 के गुलबर्ग सोसाइटी दंगा मामले में एसआईटी की एक विशेष अदालत ने शुक्रवार को 24 दोषियों की सजा का ऐलान कर दिया। 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। जबकि 12 को 7 साल और एक दोषी को 10 साल कैद की सजा सुनाई गई है। गौरतलब है कि इस मामले में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत 69 लोगों की हत्या कर दी गई थी। गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार मामले को सभ्‍य समाज के इतिहास का ‘सबसे काला दिन’ करार देते हुए एक विशेष एसआईटी अदालत ने, वर्ष 2002 में गोधरा कांड के बाद हुई हिंसा के दौरान कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसन जाफरी सहित 69 लोगों को जिंदा जलाने के मामले में शुक्रवार को 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। सभी दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग को ठुकराते हुए अदालत ने कहा कि अगर राज्य 14 साल कैद के बाद सजा में छूट देने के अपने अधिकार का उपयोग नहीं करता है तो 11 दोषियों की उम्रकैद की सजा उनकी मौत तक रहेगी। अदालत ने कम गंभीर अपराधों के लिए 13 दोषियों में से एक को दस साल कैद की सजा और 12 अन्य में से प्रत्येक को सात साल कैद की सजा सुनाई है। अभियोजन पक्ष ने मांग की थी कि सभी 24 दोषियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए। नरसंहार को सभ्‍य समाज के इतिहास में सबसे काला दिन बताते हुए विशेष अदालत के न्यायाधीश पीबी देसाई ने दोषियों को मौत की सजा सुनाने से इंकार कर दिया और कहा कि अगर आप सभी पहलुओं को देखें तो, रिकॉर्ड में पहले का कोई उदाहरण नहीं है।

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख