अहमदाबाद: गुजरात हाईकोर्ट को सूचित किया गया कि 2002 के गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार में बरी किये जाने वालों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी को हाई कोर्ट जाने के लिए राज्य सरकार ने अभी तक अपनी अनुमति नहीं दी है। विशेष अदालत ने एक साल से ज्यादा समय पहले इस मामले में फैसला सुनाया था। न्यायमूर्ति सोनिया गोकनी कांग्रेस के दिवंगत नेता एहसान जाफरी की पत्नी जकिया की ओर से दायर की गयी याचिका पर सुनवाई कर रही थीं। वर्ष 2002 के दंगा मामलों में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य को दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखने के निचली अदालत के आदेश को इस याचिका में चुनौती दी गई है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता और एसआईटी के वकीलों ने उन्हें इस बारे में बताया। वर्ष 2002 के दंगा मामलों में एक गुलबर्ग नरसंहार में पिछले साल जून में यहां एक विशेष अदालत ने 24 आरोपियों को दोषी ठहराया और 36 अन्य को बरी कर दिया था। हत्याकांड में जाफरी और 68 अन्य को भीड़ ने जिंदा जला दिया था।
न्यायमूर्ति गोकनी ने जब गुलबर्ग मामले की स्थिति के बारे में पूछा तो जाफरी और एसआईटी के वकीलों ने अदालत को सूचित किया कि विशेष अदालत ने जिन आरोपियों को दोषी करार दिया, वे अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देने के लिए पहले ही हाई कोर्ट जा चुके हैं। अदालत को बताया गया कि जिंदा बचे कुछ पीड़ितों ने भी कुछ आरोपियों को बरी किये जाने के खिलाफ याचिका दायर की। अदालत ने जब पूछा कि क्या एसआईटी ने अपील दायर की है इस पर वकीलों ने अदालत को बताया कि हाई कोर्ट का रूख करने के लिए उसे गुजरात सरकार की मंजूरी का इंतजार है।