चेन्नई: नेशनल इलीजिबिलिटी कम एंट्रेंस एक्जाम (नीट) जारी रहने पर ग्रामीण तमिलनाडु में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को भविष्य में डॉक्टर नहीं मिलेंगे। मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके राजन ने यह बात कही है। उन्होंने इस परीक्षा के प्रभाव पर राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। जस्टिस राजन ने एनडीटीवी को बताया कि "नीट गरीबों को वंचित करता है, केवल अमीर ही सबसे अधिक सीटें हासिल करते हैं। जब आप स्थानीय छात्रों को एमबीबीएस की पढ़ाई के मौके नहीं देते हैं, तो संपन्न लोग डॉक्टर बनने के बाद दूरदराज के इलाकों में पीएचसी में सेवा नहीं देने वाले हैं। वे पढ़ाई जारी रखने के लिए विदेश जाएंगे और अपना जीवन संवारेंगे।"
तमिलनाडु को छोड़कर अन्य सभी राज्यों ने नीट को स्वीकार कर लिया है। पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि "अन्य राज्य भी जल्द ही यह मांग करने वालों में शामिल होंगे। तमिलनाडु कई मुद्दों में अग्रणी रहा है। पहले हमने केवल हिंदी थोपने का विरोध किया था, लेकिन अब अन्य दक्षिणी राज्य भी विरोध कर रहे हैं।"
पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि नीट परीक्षा के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए राज्य द्वारा गठित समिति को 86,000 से अधिक अभ्यावेदन प्राप्त हुए। उन्होंने कहा कि नीट अपूरणीय क्षति कर रहा है।
पैनल को तमिलनाडु में मेडिकल प्रवेश से संबंधित डेटा का अध्ययन करने और पिछड़े वर्गों के छात्रों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक सिफारिशें करने का काम सौंपा गया था।
जस्टिस राजन ने कहा कि आरक्षण के बावजूद गरीब और ग्रामीण छात्रों को समान रूप से लाभ नहीं मिला है क्योंकि वे शहरी संपन्न छात्रों के विपरीत निजी कोचिंग का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोई कोचिंग सेंटर भी नहीं है।
उन्होंने एनडीटीवी से कहा कि "नीट गरीबों के अवसर खत्म करता है। समानता केवल गरीबों के साथ समान व्यवहार नहीं है। हमें इस प्रणाली के परिणाम को देखना चाहिए, क्या यह समाज के हर वर्ग की मदद करता है? यदि ऐसा नहीं होता है, तो हमें इसे बदलना चाहिए।"
राजन का दावा है कि नीट अनिवार्य होने से पहले बड़ी संख्या में गरीब छात्र मेडिकल में प्रवेश पाने में कामयाब रहे, जबकि उनमें से बड़े पैमाने पर छात्र सरकारी स्कूलों से पढ़कर आए थे।
पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि आज गरीब छात्र इस डर से नीट के लिए आवेदन नहीं कर रहे हैं कि वे इसमें चयनित नहीं हो पाएंगे, क्योंकि परीक्षा सीबीएसई पर आधारित है जो कि एक अलग पाठ्यक्रम है।
मानकों में गिरावट के संभावित डर के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि "तमिलनाडु की मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली और इसके कुशल डॉक्टरों, जिन्होंने राज्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध स्वास्थ्य राजधानी बनाया है, ने नीट पास नहीं किया है।''
मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि नीट में प्रयासों की संख्या पर कोई सीमा नहीं है। उन्होंने कहा कि "यह रटकर सीखने को बढ़ावा देता है। कई रिपीटर्स हैं जो बारहवीं कक्षा के बाद निजी कोचिंग कक्षाओं में जाने की तैयारी करते हैं और उच्च प्रतिशत लेना चाहते हैं। आप बारहवीं कक्षा के उस छात्र को कैसे डंप कर सकते हैं जो 98% अंक लाया हो? यहां तक कि आईएएस के लिए भी आठ प्रयासों की एक सीमा है, लेकिन नीट के लिए कोई सीमा नहीं है।"
सत्तारूढ़ डीएमके और मुख्य विपक्षी एआईएडीएमके सहित अधिकांश दल नीट को लेकर एकमत हैं। वे यह कहते हुए परीक्षा को रद्द करने की मांग कर रहे हैं कि यह सामाजिक न्याय, ग्रामीण और सरकारी स्कूल के छात्रों के खिलाफ है।
तमिलनाडु ने गरीब और ग्रामीण छात्रों को निजी कोचिंग के संबंध में नुकसान का तर्क देते हुए नौ वर्षों के लिए मेडिकल प्रवेश परीक्षा को समाप्त कर दिया था। जबकि डीएमके सरकार यूपीए शासन के दौरान नीट से छूट के लिए राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त करने में कामयाब रही थी। तब डीएमके कांग्रेस सरकार का हिस्सा थी, जो कि नीट लाई थी। भाजपा ने अपनी सहयोगी अन्नाद्रमुक के दबाव के बावजूद समर्थन देने से इंकार कर दिया था। अन्नाद्रमुक ने 2011 से दस साल तक राज्य पर शासन किया।
जस्टिस राजन की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार को नीट से छूट प्राप्त करने की दिशा में काम करने के लिए विकल्पों की एक सूची दी गई है। राज्य सरकार ने अभी रिपोर्ट और कार्य योजना पर अपने रुख की घोषणा नहीं की है।