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कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने शनिवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे की पेशकश की है। उन्होंने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "तृणमूल कांग्रेस की आंतरिक बैठक में मैंने मुख्यमंत्री पद छोड़ने की पेशकश की, लेकिन पार्टी ने ठुकरा दिया, हो सकता है कि मैं मुख्यमंत्री पद पर बनी रहूं।" उन्होंने भाजपा पर पश्चिम बंगाल में मतदाताओं के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का भी आरोप लगाया। प्रेस कांफ्रेंस में ममता ने कहा- केंद्रीय बलों ने हमारे खिलाफ काम किया। आपातकाल जैसी स्थिति बना दी गई। हिंदू-मुस्लिम विभाजन किया गया और वोटों को बांटा गया। हमने चुनाव आयोग से शिकायत की लेकिन कुछ नहीं हुआ। मैंने बैठक की शुरुआत में ही कह दिया था कि मैं मुख्यमंत्री नहीं बनी रहना चाहती हूं।

बता दें कि बंगाल में इस बार चुनाव के दौरान जबरदस्त संग्राम नजर आया। सभी सात चरणों में भाजपा-टीएमसी के बीच संघर्ष की स्थिति बनी रही। कई जगहों पर भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं पर हमले हुए। 23 मई को आए नतीजे के दिन ममता को जबरदस्त झटका लगा।

भाजपा ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत दर्ज की और उसका वोट प्रतिशत 2014 के 17 प्रतिशत के मुकाबले इस बार 40.5 प्रतिशत तक बढ़ गया। यहां तक कि जिन सीटों पर टीएमसी जीती वहां भी भाजपा दूसरे नंबर पर रही जबकि वाम दल के हिस्से तीसरा स्थान आया। पार्टी के इस खराब प्रदर्शन का अब विश्लेषण शुरू हो गया है।

तृणमूल कांग्रेस को स्तब्ध करने वाले प्रदर्शन के पीछे मोदी लहर और गत वर्ष खून-खराबे के साथ हुए पंचायत चुनावों के बाद टीएमसी द्वारा अल्पसंख्यकों का कथित तौर पर तुष्टीकरण मतदाताओं के ध्रुवीकरण की वजह माना जा रहा है। भगवा पार्टी का जानाधार अचानक बढ़ने से हैरान तृणमूल कांग्रेस खेमा बंट गया है।

स्थानीय नेताओं ने शीर्ष पार्टी पदों पर काबिज लोगों की ''दूरदर्शिता" की कमी और उनके ''अहंकार" भरे रवैये को खराब चुनावी प्रदर्शन के पीछे की मुख्य वजह बताया। हालांकि टीएससी का वोट प्रतिशत इस बार बढ़ा है। उसे 2014 के 39 प्रतिशत के मुकाबले इस बार 43 प्रतिशत वोट मिले हैं लेकिन वह दक्षिण बंगाल के आदिवासी बहुल जंगलमहल और उत्तर में चाय बागान वाले क्षेत्रों में अपना गढ़ बचाए रखने में नाकाम रही।

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