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धार: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ ने आज धार जिले के बडनावर में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने तीखे तेवर अपनाते हुए कहा कि राज्य की जनता बताएगी कि कौन बेहतर है। उन्होंने इशारों-इशारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस से भाजपा में गए ज्योतिरादित्य सिंधिया पर भी तंज कसा। कमलनाथ ने कहा, 'मैं कोई महाराज नहीं हूं। मैं शेर नहीं हूं। मैं 'मामा' नहीं हूं। मैंने कभी चाय नहीं बेची। मैं कमलनाथ हूं। मध्य प्रदेश की जनता तय करेगी कि कौन बिल्ली है और कौन चूहा है।'

 वहीं, राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कमलनाथ पर निशाना साधा है। चौहान ने कहा, 'उन्होंने (कमलनाथ ने) पूरे मध्यप्रदेश को बर्बाद कर दिया। जो उन्होंने किया राज्य उसका परिणाम भुगत रहा है। हम इसे जनता के सामने लेकर आएंगे।'

पूर्व मुख्यमंत्री बडनावर में बूथ प्रभारियों की बैठक में शामिल हुए थे। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को हिम्मत न हारने की सीख देते हुए कहा कि राज्य में कैसा सौदा हुआ है यह जनता को समझाना है। मैं आपसे यही कहने आया हूं कि कांग्रेस का सिपाही आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहेगा।

इससे पहले उन्होंने बैजनाथ महादेव के दर्शन भी किए। उन्होंने कहा कि मैं महाकाल का आशीर्वाद लेने आया था। मध्यप्रदेश का भविष्य बने यह मेरी प्रार्थना है।

राज्य में विभागों के बंटवारे को लेकर खींचतान जारी

मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार के बाद भी विभागों के बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है। विभागों के बंटवारे को लेकर हो रही कलह पर कांग्रेस ने भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री चौहान को घेरना शुरू कर दिया है। कांग्रेस नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा है कि मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार तीन खेमों में बंट गई है। कांग्रेस नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने ट्वीट कहा, 'मध्यप्रदेश में भाजपा तीन खेमों में बंट गई है। 1. महाराज, 2. नाराज और 3. शिवराज'।

दूसरी तरफ, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चौधरी राकेश सिंह ने मंत्रिमंडल विस्तार को असंवैधानिक करार देते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और राज्यपाल लालजी टंडन को पत्र लिखा है। चौधरी ने कहा कि 1991 में संविधान संशोधन अधिनियम को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वायपेयी के समय 2003 में लागू किया गया। इसमें राज्यों को निर्देश दिया गया कि राज्य में मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री सहित कुल मंत्रियों की संख्या विधानसभा सदस्यों की कुल संख्या का 15 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए।

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