भोपाल: मध्य प्रदेश में सरकार क्या बदली मंत्रियों और अफसरों का नजरिया भी बदल गया। 13 साल पहले बतौर मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने जिस परंपरा को शुरू किया था उसे कांग्रेस की सरकार ने आते ही तोड़ा दिया। हर महीने की पहली तारीख को गाया जाने वाला वंदे मातरम मंत्रालय में आज नहीं गूंजा। इस मुद्दे पर भाजपा में खासी नाराजगी देखने को मिल रही है। परंपरा टूटने से नाराज भाजपा के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा है कि कांग्रेस देश में इसी तरह का माहौल बनाना चाहती है।
उन्होंने कहा कि आज वंदे मातरम के गायन को बंद किया गया है और आने वाले समय में मध्य प्रदेश में भारत माता की जय बोलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस देश के टुकड़े करने वालों का समर्थन करती है, यही वजह है कि 13 साल से मंत्रालय में चलने वाले वंदे मातरम गायन को इस वर्ष नहीं होने दिया गया। कमलनाथ सरकार के कैबिनेट मंत्री जीतू पटवारी ने गायन न होने को गलत बताते हुए कहा कि वंदे मातरम की प्रथा बन्द नहीं होनी चाहिए, क्यों बंद हुआ में पता करवाऊंगा।
मंत्रालयीन कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक ने कहा कि मैं अधिकारियों से इस सम्बंध में बात करूंगा। वंदे मातरम को बंद नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि नायक ने स्वीकार किया कि वंदे मातरम के लिये साल भर टेंट लगा रहता था, जिसका लाखों रुपए किराया देना पड़ता था। वहीं विधि मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि वंदे मातरम होना चाहिए था। नहीं हुआ तो गलत हुआ है। मैं इसके बारे में पता लगाऊंगा।
भारत के राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम्' के रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय हैं। बंकिमचंद्र ने अपने उपन्यासों के माध्यम से देशवासियों में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह की चेतना का निर्माण करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 27 जून 1838 को बंगाल के उत्तरी चौबीस परगना के कंथलपाड़ा में एक बंगाली परिवार में हुआ था। वे बंग्ला के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है। बंकिमचंद्र की शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में हुई। साल 1857 में उन्होंने बीए पास किया और 1869 में कानून की डिग्री हासिल की।
ऐसे हुई राष्ट्रीय गीत की रचना
बंकिमचंद्र ने जब इस गीत की रचना की तब भारत पर ब्रिटिश शासकों का दबदबा था। ब्रिटेन का एक गीत था 'गॉड! सेव द क्वीन'। भारत के हर समारोह में इस गीत को अनिवार्य कर दिया गया। बंकिमचंद्र तब सरकारी नौकरी में थे। उसके बाद उन्होंने साल 1876 में एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया 'वन्दे मातरम्'। उन्होंने अपनी किताब आनंदमठ में भी संस्कृत में इस गीत को शामिल किया। इस गीत को पहली बार 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वाराणसी अधिवेशन में गाया गया था। थोड़े ही समय में यह गीत काफी लोकप्रिय हो गया और अंग्रेज़ शासन के ख़िलाफ़ क्रांति का प्रतीक बन गया।