मुंबई: हिंदू जनसंख्या में गिरावट आने के बारे में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत की ओर से की गई टिप्पणियों को ‘दकियानूसी’ बताते हुए शिवसेना ने कहा कि प्रगतिशील हिंदू समाज उनके विचारों को स्वीकार नहीं करेगा। इसके साथ ही शिवसेना ने केंद्र से कहा कि वह ‘सामाजिक और सांस्कृतिक संतुलन’’ बनाए रखने के लिए समान नागरिक संहिता लागू करे। लंबे समय से भाजपा की सहयोगी रही शिवसेना ने कहा कि मुस्लिमों की बढ़ती आबादी से निपटने के लिए हिंदुओं की आबादी को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, नरेंद्र मोदी की सरकार को जल्दी से जल्दी समान नागरिक संहिता लागू करनी चाहिए। शिवसेना ने पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में कहा, ‘मोहन भागवत ने दकियानूसी विचारों को आधुनिक तरीके से पेश करने की कोशिश की है। उनकी टिप्पणियों को प्रगतिशील हिंदू समुदाय स्वीकार नहीं करेगा। प्रधानमंत्री मोदी भी इस बात पर सहमत नहीं होंगे कि हिंदू आबादी को बढ़ाना मुस्लिमों की बढ़ती आबादी से निपटने का सही तरीका है।’ इसमें कहा गया, ‘सरकार परिवार नियोजन पर बहुत धन खर्च कर रही है। मुस्लिम आबादी में बढ़ोत्तरी से निश्चित तौर पर देश का सामाजिक और सांस्कृतिक संतुलन प्रभावित होगा लेकिन हिंदुओं को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए कहना इस समस्या का समाधान नहीं है।’ शिवसेना ने कहा, ‘सभी समुदायों की जनसंख्या पर लगाम लगाने के लिए एकमात्र उपाय समान नागरिक संहिता को लागू करना है।
यदि हिंदू ज्यादा बच्चों को जन्म देंगे तो भुखमरी, बेरोजगारी और महंगाई जैसी समस्याओं में इजाफा ही होगा।’ शिवसेना ने भागवत से जानना चाहा कि क्या वे जानते-बूझते हुए हिंदू समुदाय की जनसंख्या बढ़ाने के लिए हिंदुओं के एक से ज्यादा पत्नियां रखने के विचार का समर्थन करने की कोशिश कर रहे हैं? संपादकीय में कहा गया, ‘वास्तव में भागवत के विचार हिंदुत्व के आदशरें पर लगे जाले के समान है। इसके बजाय, वह समान नागरिक संहिता और परिवार नियोजन के कड़े नियमों का समर्थन क्यों नहीं करते?’ हाल ही में आगरा में आयोजित एक समारोह के दौरान भागवत ने एक सवाल के जवाब में कहा था, ‘कौन सा नियम कहता है कि हिंदुओं की जनसंख्या नहीं बढ़नी चाहिए? ऐसा कुछ नहीं है। जब अन्य लोगों की जनसंख्या बढ़ रही है तो उन्हें (हिंदुओं को) किसने रोका है? यह मुद्दा व्यवस्था से जुड़ा नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सामाजिक माहौल ऐसा है।’