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नई दिल्ली: महाराष्ट्र के पुणे में जीका वायरस का पहला केस आने के बाद केन्द्र सरकार ने तीन सदस्यीय टीम रवाना की है। यह टीम राज्य सरकार के साथ मिलकर इस वायरस की रोकथाम के लिए स्थिति की निगरानी करेगी। इसके अतिरिक्त जमीनी स्तर पर राज्य सरकार की तैयारियों की समीक्षा करेगी। गौरतलब है कि हालही में जीका वायरस के मामले केरल में भी पाए गए थे। केरल के बाद महाराष्ट्र में जीका के मरीज मिलने से सरकार अलर्ट है।

इस टीम में दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के एक स्त्री रोग विशेषज्ञ और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के एक एंटोमोलॉजिस्ट शामिल हैं। यह टीम राज्य में वायरस की स्थिति की निगरानी करेंगे और आकलन करेंगे कि क्या केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के जीका प्रबंधन के लिए एक्शन प्लान को लागू किया जा रहा है।

बता दें, महाराष्ट्र में रविवार को जीका वायरस संक्रमण का पहला मामला पुणे जिले में सामने आया था। राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने बताया था कि संक्रमित पायी गई महिला मरीज पूरी तरह से ठीक हो गई है।

विभाग ने एक बयान में कहा था, ‘उसे और उसके परिवार के सदस्यों में कोई लक्षण नहीं हैं।' बयान के अनुसार पुरंदर तहसील के बेलसर गांव निवासी 50 वर्षीय महिला की शुक्रवार को जांच रिपोर्ट मिली थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि जीका संक्रमण के अलावा वह चिकनगुनिया से भी पीड़ित थी।

स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि पिछले महीने की शुरुआत में पुरंदर के एक गांव से बुखार के कई मामले सामने आए थे। जांच के लिए पुणे भेजे गए नमूनों में से तीन चिकनगुनिया पॉजिटिव निकले थे। इसके बाद गांव और उस क्षेत्र के और लोगों को सैंपल भेजे गए, जिनमें से चिकनगुनिया के 25, डेंगू के तीन और जीका वायरस संक्रमण के एक मामला सामने आया।

महाराष्ट्र स्वास्थ्य विभाग की क्विक रिस्पांस टीम ने शनिवार को क्षेत्र का दौरा किया और स्थानीयों उन सावधानियों के बारे में बताया, जो उन्हें लेनी चाहिए।

इससे पहले, इस साल केवल केरल में जीका वायरस के मामले सामने आए थे, वहीं अब तक 63 मामले सामने आ चुके हैं।

जीका वायरस एडीज मच्छर से फैलता है, जो डेंगू और चिकनगुनिया भी फैलाता है। इसके कुछ सामान्य लक्षण आँख आना, बुखार, शरीर में दर्द, दाने, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और सिरदर्द हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की चेतावनी के मुताबिक, लक्षण आमतौर पर दो से सात दिनों के बीच रहते हैं। हालांकि, अधिकांश संक्रमित लोगों में लक्षण विकसित नहीं होते हैं।

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