जयपुर: राजस्थान में विधानसभा की दो सीट पर इस माह होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस के सामने जीत हासिल कर यह मिथक तोड़ने की भी चुनौती है कि उपचुनाव के नतीजे आमतौर पर सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में नहीं रहते। करीब दस महीने पहले सत्ता में आई कांग्रेस के लिए हालांकि खींवसर और मंडावा सीट पर उपचुनाव होना फायदे का सौदा प्रतीत हो रहा है क्योंकि ये पारंपरिक रूप से कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले इलाकों में शामिल हैं। कांग्रेस ने इन दोनों सीट पर पुराने चेहरों पर दांव लगाया है। उपचुनाव के तहत खींवसर व मंडावा विधानसभा सीट पर 21 अक्तूबर को वोट पड़ेंगे।
उपचुनाव के पिछले रिकॉर्ड की बात करें तो 1998 से 2018 के बीच 26 सीटों पर उपचुनाव हुआ, जिनमें सत्तारूढ़ पार्टी का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा है। भाजपा के पिछले पांच साल (2013-2018) के कार्यकाल में छह सीटों के लिए उपचुनाव हुआ। इनमें से कांग्रेस ने चार सीटें जीती जबकि भाजपा कोटा दक्षिण सीट पर दोबारा जीत दर्ज करने के साथ धौलपुर सीट को बसपा से छीन केवल दो सीट अपने नाम कर पाई। यह अलग बात है कि 2008-13 के दौरान केवल दो उपचुनाव हुए और दोनों सीटें पूर्व विजेता पार्टी की झोली में ही गई।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधानसभा उपचुनाव के परिणाम का राज्य के राजनीतिक समीकरणों पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी की साख जरूर दांव पर लगी है।
राजस्थान में दिसंबर 2018 में विधानसभा चुनाव हुए थे। 200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 106 विधायक हैं। इनमें बसपा के वे छह विधायक भी शामिल हैं जो पिछले महीने कांग्रेस में शामिल हो गए थे।