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मुंबई: जेएनयू विवाद की पृष्ठभूमि में जानेमाने वकील मिहिर देसाई ने आज (रविवार) कहा कि यदि जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की भी होती, तो सुप्रीम कोर्ट के पहले के निर्णयों के मुताबिक उन्हें ‘‘देशद्रोह’’ के तहत आरोपित नहीं किया जा सकता । ‘बहुलता और आजादी का जश्न’ पर आयोजित एक सेमिनार में देशद्रोह के मुद्दे पर अपनी राय जाहिर करते हुए देसाई ने कहा, ‘‘कन्हैया का मामला (प्रधानमंत्री) मोदी जी, अमित शाह और स्मृति ईरानी की ओर से ‘गांधी के मामले जैसी भूल’ का दोहराव है ।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ब्रिटिश सरकार ने इस कानून के तहत गांधीजी को भी गिरफ्तार किया था, क्योंकि उसने सोचा कि वह इस तरह अपने विचारों को प्रचारित कर सकती है । लेकिन यह उसकी सबसे बड़ी भूल थी, लोकमान्य तिलक को 1897 में इस कानून के तहत तब गिरफ्तार किया गया था जब उन्होंने बंबई प्रांत में प्लेग (महामारी) से निपटने के सरकार के तौर-तरीकों के खिलाफ लिखा था ।’’ देसाई ने कहा कि आजादी से पहले के दौर में किसी को सरकार के खिलाफ ‘बेरूखी’ फैलाने के लिए देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाता था । उन्होंने कहा, ‘‘1962 में केदारनाथ मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस कानून को हल्के तरीके से देखने की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, किसी शख्स को देशद्रोह के लिए तभी आरोपित किया जा सकता है, जब सरकार के खिलाफ बेरूखी फैलाने से हिंसा होती हो या लोक व्यवस्था बिगड़ती हो ।’’ देसाई ने कहा कि इसलिए कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी के मामले की तरह उन्होंने उम्मीद की थी कि कन्हैया को अगले ही दिन अदालत जमानत दे देगी । त्रिवेदी को भी देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था ।

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