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नई दिल्ली: जेएनयू के घटनाक्रम पर हाल में तीखी प्रतिक्रिया जता चुके विश्व विचारक एवं विद्वान नोआम चोम्सकी मानते हैं कि आजादी और मानवाधिकार का ख्याल करने वाले देशों के बीच भारत की छवि लगातार गिर रही है। चोम्सकी ने अमेरिका से ईमेल साक्षात्कार में कहा, ‘असहिष्णुता की बहस सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। हर जगह बहुत असहिष्णुता है। मानवाधिकार, आजादी और न्याय से सरोकार रखने वाले लोगों के बीच भारत की छवि लगातार गिर रही है।’ मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के भाषा-विज्ञान एवं दर्शन के 87 वर्षीय एमेरिट्स प्रोफेसर ने कहा, ‘अकादमीय आजादी राजनीतिक आजादी और लोकतंत्र की समग्र हैसियत की एक प्रमुख सूचक है। सार्वजनिक उच्चतर शिक्षा प्रणाली में निजीकरण में इजाफा पूरी दुनिया में इन आजादियों को कमजोर कर रहा है।’

चोम्सकी ने यह बात तब कही जब उनसे ‘असहिष्णुता’ पर बहस के बारे में पूछा गया और यह पूछा गया कि शैक्षिक संस्थानों में सरकार की यह कथित दखलअंदाजी क्या सिर्फ भारत तक सीमित है। उन्होंने कहा कि ‘हालांकि जेएनयू के घटनाक्रम तानाशाही की संस्कृति की दिशा में संकेत दे रहे हैं, भारत एकमात्र ऐसा देश नहीं है जहां शैक्षिक संस्थानों को इस तरह के हमलों का निशाना बनाया जा रहा है।’ ‘आधुनिक भाषा-विज्ञान के पितामह’ कहे जाने वाले चोम्सकी ने कहा, ‘इस संदर्भ में 2016 के आरंभ से तीन मामले सर्वाधिक प्रमुख रहे : तुर्की सरकार की ओर से शुरू की गई कुर्द विरोधी जंग की आलोचना करने वाले ‘शांति के लिए अकादमिक’ की याचिका के 1200 से ज्यादा हस्ताक्षरकर्ताओं पर तुर्क प्रशासन के हमले, जेएनयू और हैदराबाद विश्वविद्यालय में अहिंसक कैम्पस विरोध में शामिल छात्रों पर भारतीय अधिकारियों के हमले और काहिरा में इतालवी शोध छात्र जिउलियो रेजेनी की यातना एवं हत्या।’ एक कार्यक्रम में कथित रूप से राष्ट्रविरोधी नारेबाजी के सिलसिले राष्ट्रद्रोह के आरोपों के तहत जेएनयू के छह छात्रों के खिलाफ मामले दर्ज होने के बाद चोम्सकी ने पिछले ही हफ्ते जेएनयू के कुलपति को लिखा था और युनिवर्सिटी कैम्पस के अंदर पुलिस प्रवेश की इजाजत देने के कुलपति के फैसले पर सवाल किया था। हार्वर्ड और कोलंबिया युनिवर्सिटी समेत दुनिया भर के विश्वविद्यालयों से 40 से ज्यादा मानद डिग्रियों से सम्मानित चोम्सकी ने एक बयान पर दस्तखत किए थे जिसमें ‘मौजूदा भारत सरकार की ओर से पैदा की गई तानाशाही की संस्कृति’ की निंदा की गई थी। इस बयान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित ओरान पामुक सहित दुनिया के 86 नामी गिरामी एकेडमीशियन ने हस्ताक्षर किए थे।

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